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________________ दशम शतक : उद्देशक-२ ६०१ 'पुरओ' आदि शब्दों का भावार्थ-पुरओ-आगे के। निज्झायमाणस्स–निहारते या चिन्तन करते हुए । मग्गओ— पीछे के। अवयक्खमाणस्स- अवकांक्षा-अपेक्षा करते हुए, या प्रेक्षण करते हुए। अवलोएमाणस्स–अवलोकन करते हुए। संपराइया—साम्परायिकी-कषायसम्बन्धी। उस्सुत्तमेवरीयइउत्सूत्र-सूत्रविरुद्ध ही चलता है। अहासुत्तं यथासूत्र-सूत्रानुसार। ईरियावहिया किरिया- ऐर्यापथिक क्रिया, जो केवल योगप्रत्यया कर्मबन्धक्रिया हो। योनियों के भेद-प्रभेद प्रकार एवं स्वरूप ४. कतिविधा णं भंते ! जोणी पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा–सीया उसिणा सीतोसिणा।एवं जोणीपयं निरवसेसं भाणियव्वं। [४ प्र.] भगवन् ! योनि कितने प्रकार की कही गई है ? ___ [४ उ.] गौतम! योनि तीन प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार-शीत, उष्ण, शीतोष्ण । यहाँ (प्रज्ञापनासूत्र का नौवाँ) योनिपद सम्पूर्ण कहना चाहिए। विवेचन–योनिसम्बन्धी निरूपण- प्रस्तुत चौथे सूत्र में योनि के प्रकार, भेदोपभेद, संख्या, वर्णादि का विवरण जानने के लिए प्रज्ञापनासूत्रगत योनिपद का अतिदेश किया गया है।' योनि का निर्वचनार्थ- योनिशब्द 'यु मिश्रणे' धातु से निष्पन्न हुआ है। अत: इसका व्युत्पत्तिजन्य अर्थ हुआ जिसमें तैजस कार्मणशरीर वाले जीव औदारिक आदि शरीर के योग्य पुद्गलस्कन्ध-समुदाय के साथ मिश्रित होते हैं, उसे योनि कहते हैं।' योनि के सामान्यतया तीन प्रकार- प्रस्तुत मूल पाठ में योनि तीन प्रकार की बताई गई है। शीत, उष्ण, शीतोष्ण । शीतस्पर्श के परिणाम वाली शीतयोनि, उष्णस्पर्श के परिणाम वाली उष्णयोनि और उभयस्पर्श के परिणाम वाली शीतोष्णयोनि कहलाती है। प्रज्ञापना के योनिपद के अनुसार नारकों की शीत और उष्ण दो प्रकार की योनियाँ हैं, देवों और गर्भज जीवों की शीतोष्ण योनियाँ हैं । तेजस्काय की उष्णयोनि होती है तथा शेष जीवों के तीनों प्रकार की योनियाँ होती हैं। प्रकारान्तर से योनि के तीन भेद- इस प्रकार हैं-सचित्त (जीव-प्रदेशों से सम्बन्धित) अचित्त (सर्वथा जीवरहित) और मिश्र। नारकों और देवों की योनियाँ अचित्त होती है। गर्भज जीवों की सचित्ताचित्त १. वही, पत्र ४९६ २. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), भा. २, पृ. ४८८-४८९ (ख) प्रज्ञापनासूत्र (म. जै. विद्यालय) ९वाँ योनिपद, सू. ७३८-७३, पृ. १९०-९२ ३. 'युवन्ति-तैजस-कार्मणशरीरवन्त औदारिकादिशरीरयोग्यस्कन्धसमुदायेन मिश्रीभवन्ति जीवा यस्यां सा योनिः।' -भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४९६
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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