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________________ ५९० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पर्यायार्थिकनय से व्यक्तिगत रूप से पुराने देवों का च्यवन हो जाता है, उनके स्थान पर नये त्रायस्त्रिंशक देव जन्म लेते हैं। त्रायस्त्रिशक देव बनने के जो कारण बताए हैं, उनमें दो बातें स्पष्ट होती हैं - [१] जो भवनपति देवों के इन्द्रों के त्रायस्त्रिंशक देव हुए वे पूर्वजन्म में पहले तो उग्रविहारी शुद्धाचारी श्रमणोपासक थे, किन्तु बाद में शिथिलाचारी प्रमादी बन गए तथा अन्तिम समय में संल्लेखना - संधारा के समय आलोचना-प्रतिक्रमणादि नहीं किया तथा [२] जो वैमानिक देवेन्द्रों के त्रायस्त्रिशक देव हुए, वे पूर्वजन्म में पहले और पीछे उग्रविहारी शुद्धाचारी श्रमणोपासक रहे और अन्तिम समय में संलेखना - संथारा के दौरान उन्होंने आलोचना, प्रतिक्रमणादि करके आत्मशुद्धि कर ली। इस समग्र पाठ से यह स्पष्ट है कि वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों में त्रायस्त्रिशक देव नहीं होते । पंचम उद्देशक में चमरेन्द्र आदि भवनवासी देवेन्द्रों तथा उनके लोकपालों का, पिशाच आदि व्यन्तरजातीय देवों के इन्द्रों की, चन्द्रमा, सूर्य एवं ग्रहों की एवं शक्रेन्द्र तथा ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियों की संख्या, प्रत्येक अग्रमहिषी के देवी - परिवार की संख्या एवं अपने-अपने नाम के अनुरूप राजधानी एवं सिंहासन पर बैठकर अपनी-अपनी सुधर्मा सभा में स्वदेवीवर्ग के साथ मैथुन निमित्तक भोग भोगने की असमर्थता का निरूपण किया है। छठे उद्देशक में शक्रेन्द्र की सौधर्मकल्प स्थित सुधर्मासभा की लम्बाई-चौड़ाई, विमानों की संख्या तथा शक्रेन्द्र के उपपात, अभिषेक, अलंकार, अर्चनिका, स्थिति, यावत् आत्मरक्षक इत्यादि परिवार के समस्त वर्णन का अतिदेश किया गया है। अन्तिम सूत्र में शक्रेन्द्र की ऋद्धि, द्युति, यश, प्रभाव, स्थिति, लेश्या, विशुद्धि एवं सुख आदि का निरूपण भी अतिदेशपूर्वक किया गया है। सातवें से चौतीसवें उद्देशक तक में उत्तरदिशावर्ती २८ अन्तद्वीपों का निरूपण भी जीवा - जीवाभिगम सूत्र के अतिदेशपूर्वक किया गया है। कुल मिलाकर पूरे शतक में मनुष्यों और देवों की आध्यात्मिक, भौतिक एवं दिव्य शक्तियों का निर्देश किया गया है। १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं विसयाणुक्कमो पृ. ३७-३८
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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