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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ७३. तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया ण्हाए कयबलिकम्मे जाव विभूसिए हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिन्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उधुव्वमाणीहिं उद्धव्वमाणीहिं हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे महया भडचडगर जाव परिक्खित्ते जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिट्ठओ पिट्ठओ अणुगच्छइ।
[७३] तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने स्नान आदि किया। यावत् वे विभूषित होकर उत्तम हाथी के कंधे पर चढ़े और कोरण्टक पुष्प की माला से युक्त छत्र धारण किये हुए, श्वेत चामरों से बिंजाते हुए, घोड़े, हाथी, रथ और श्रेष्ठ योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना से परिवृत होकर तथा महासुभटों के समुदाय से घिरे हुए यावत् क्षत्रियकुमार के पीछे-पीछे चल रहे थे।
७४. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पुरओ महं आसा आसव (वा)रा, उभओ पासिं णागा णागवरा, पिटुओ रहा रहसंगेल्ली।
[७४] साथ ही उस जमालि क्षत्रियकुमार के आगे बड़े-बड़े और श्रेष्ठ घुड़सवार तथा उसके दोनों बगल (पार्श्व) में उत्तम हाथी एवं पीछे रथ और रथसमूह चल रहे थे।
विवेचन–शिविका के आगे-पीछे एवं आसपास चलने वाले मंगलादि एवं जनवर्ग—प्रस्तुत सूत्रों में यह वर्णन है कि सहस्रपुरुषवाहिनी शिविका पर सबके आरूढ होने पर उसके आगे-आगे अष्ट मंगल, छत्र, पताका, चामर, विजयवैजयन्ती आदि तथा क्रमशः पीठ, सिंहासन तथा अनेक किंकर, कर्मकर, एवं यष्टि, भाला, चामर, पुस्तक, पीठ, फलक, वीणा, कुतप (कुप्पी) आदि लेकर चलने वाले एवं उनके पीछे दण्डी, मुण्डी, शिखण्डी, जटी, पिच्छी हास्यादि करने वाले लोग गाते-बजाते, हंसते-हंसाते चले जा रहे थे। निष्कर्ष यह कि जमालिकुमार की शिविका के साथ-साथ जनसमूह चल रहा था।
उसके पीछे जमालिकुमार के पिता चतुरंगिणी सेना एवं भटादिवर्ग के साथ चल रहे थे। उनके पीछे श्रेष्ठ घोड़े, घुड़सवार, उत्तम हाथी, रथ तथा रथसमुदाय चल रहे थे।
७५. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अब्भुग्गयभिंगारे पग्गहियतालियंटे ऊसवियसेतछत्ते पवीइतसेतचामरबालवीयणीए सव्विड्डीए जाव' णादितरवेणं खत्तियकुंडग्गामं नगरं मझमझेणं जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे जेणेव बहुसालए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
[७५] इस प्रकार (दीक्षाभिलाषी) क्षत्रियकुमार जमालि सर्व ऋद्धि (ठाठ-बाठ) सहित यावत् बाजे
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. १, पृ. ४७१-४७२ २. 'जाव' पद सूचित पाठ-"तयाणंतरं च णं बहवे लट्ठिग्गाहा कुंतग्गाहा जाव पुत्थयग्गाहा जाव वीणग्गाहा।तयाणंतरं
चणं अट्ठसयं गयाणं अट्ठसयं तुरगाणं अट्ठसयं रहाणं। तयाणंतरं च णं लउड-असि-कोतंहत्थाणं बहूणं पायत्ताणीणं पुरओ संपट्ठियं। तयाणंतरं चणं बहवे राईसर-तलवर जाव सत्थवाहपभिइओ पुरओ संपट्ठिया जावणादितरवेणं।"
-औपपातिक सू. ३२, पत्र. ७३