SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 536
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवम शतक : उद्देशक-३२ ५०५ सम्मुच्छिममणुस्सेसु वा होज्जा, एगे गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु वा होज्जा। एवं एएणं कमेणं जहा नेरइयपवेसणए तहा मणुस्सपवेसणए वि भाणियब्वे जाव दस। [३७ प्र.] भगवन्! दो मनुष्य, मनुष्य-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या सम्मूछिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि (पूर्ववत्) प्रश्न। __[३७ उ.] गांगेय! दो मनुष्य या तो सम्मूछिममनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, अथवा गर्भजमनुष्यों में होते हैं। अथवा एक सम्मूछिम मनुष्यों में और एक गर्भज मनुष्यों में होता है। इस क्रम से जिस प्रकार नैरयिकप्रवेशनक कहा, उसी प्रकार मनुष्य-प्रवेशनक भी यावत् दस मनुष्यों तक कहना चाहिए। ३८. संखेज्जा भंते ! मणुस्सा० पुच्छा। गंगेया ! सम्मुच्छिममणुस्सेसु वा होज्जा गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु वा होज्जा। अहवा एगे सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, संखेज्जा गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा।अहवा दो सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, संखेज्जा गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा। एवं एक्केक्कं ओसारितेसु जाव अहवा संखेन्जा सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, संखेज्जा गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा। [३८ प्र.] भगवन् ! संख्यात मनुष्य, मनुष्य-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए सम्मूच्छिम मनुष्यों में होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। [३८ उ.] गांगेय! वे सम्मूछिममनुष्यों में होते हैं, अथवा गर्भजमनुष्यों में होते हैं। अथवा एक सम्मूछिममनुष्यों में होता है और संख्यात गर्भजमनुष्यों में होते हैं । अथवा दो सम्मूच्छिममनुष्यों में होते हैं और संख्यात गर्भजमनुष्यों में होते हैं। इस प्रकार उत्तरोत्तर एक-एक बढ़ाते हुए यावत् संख्यात सम्मूछिममनुष्यों में और संख्यात ग़र्भजमनुष्यों में होते हैं। ३९. असंखेज्जा भंते ! मणुस्सा० पुच्छा। गंगेया ! सव्वे वि ताव सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा। अहवा असंखेज्जा सम्मुच्छिममणुस्सेसु, एगे गब्भवक्कंतियमणुस्सेसुहोजा।अहवा असंखेज्जा सम्मुच्छिममणुस्सेसु, दो गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा। एवं जाव असंखेज्जा सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, संखेज्जा गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा। [३९ प्र.] भगवन् ! असंख्यात मनुष्य, मनुष्यप्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए, इत्यादि प्रश्न। [३९ उ.] गांगेय! वे सभी सम्मूछिम मनुष्यों में होते हैं । अथवा असंख्यात सम्मूछिम मनुष्यों में होते हैं और एक गर्भज मनुष्यों में होता है। अथवा असंख्यात सम्मूछिम मनुष्यों में होते हैं और दो गर्भज मनुष्यों में होते हैं । अथवा इसी प्रकार यावत् असंख्यात सम्मूछिम मनुष्यों में होते हैं और संख्यात गर्भज मनुष्यों में होते हैं विवेचन मनुष्य-प्रवेशनक के प्रकार और भंग-मनुष्य-प्रवेशनक के दो प्रकार है—सम्मूछिम
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy