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________________ ४८६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र है कि यहाँ एक का संचार अधिक करना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् जानना चाहिए। (इस प्रकार त्रिकसंयोगी कुल ३५० भंग हुए।) ( चतुष्कसंयोगी ३५० भंग ) जिस प्रकार पांच नैरयिकों के चतुष्कसंयोगी भंग कहे गए, उसी प्रकार छह नैरयिकों के चतु:संयोगी भंग जान लेने चाहिए। ( पंचसंयोगी १०५ भंग) पांच नैरयिकों के जिस प्रकार पंचसंयोगी भंग कहे गए, उसी प्रकार छह नैरयिकों के पंचसंयोगी भंग जान लेने चाहिए, परन्तु इसमें एक नैरयिक का अधिक संचार करना चाहिए। यावत् अन्तिम भंग (इस प्रकार है— ) दो बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमः प्रभा में और एक अधः सप्तमपृथ्वी में होता है। (इस प्रकार पंचसंयोगी कुल १०५ भंग हुए ।) ( षट्संयोगी ७ भंग ) – (१) अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में, यावत् एक तमःप्रभा में होता है, (२) अथवा एक रत्नप्रभा में, यावत् एक धूमप्रभा में और एक अधः सप्तमपृथ्वी में होता है। (३) अथवा एक रत्नप्रभा में, यावत् एक पंकप्रभा में, एक तमः प्रभा में और एक अध:सप्तमपृथ्वी में होता है । (४) अथवा एक रत्नप्रभा में, यावत् एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में, यावत् एक अध:सप्तमपृथ्वी में होता है। (५) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में, यावत् एक अध:सप्तमपृथ्वी में होता है। (६) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में यावत् एक अधः सप्तमपृथ्वी में होता है। (७) अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, यावत् एक अधः सप्तमपृथ्वी में होता है। विवेचन—छह नैरयिकों के प्रवेशनक भंग प्रस्तुत सू. २१ में छह नैरयिकों के प्रवेशनक भंगों का विवरण दिया गया है। एक संयोगी ७ भंग —— प्रत्येक नरक में ६ नैरयिकों का प्रवेशनक होने से सात नरकों के असंयोगी भंग ७ हुए । द्विकसंयोगी १०५ भंग — द्विकसंयोगी विकल्प ५ होते हैं - यथा—१-५, २-४, ३-३, ४-२ और ५-१ । इन पांच विकल्पों को १ – रत्नप्रभा - शर्कराप्रभा, २- रत्नप्रभा - बालुकाप्रभा, ३ - रत्नप्रभा - पंकप्रभा, ४रत्नप्रभा - धूमप्रभा, ५ - रत्नप्रभा - तमः प्रभा और ६ - रत्नप्रभा तमः स्तमःप्रभा, इन ६ से गुणाकार करने पर ६४५ = ३० भंग रत्नप्रभा के संयोग वाले हुए। इसी प्रकार शर्कराप्रभा के संयोग वाले २५ भंग होते हैं, बालुकाप्रभा के संयोग वाले २०, पंकप्रभा के संयोग वाले १५, धूमप्रभा के संयोग वाले १०, तमः प्रभा के संयोग वाले ५ भंग होते हैं। ये सभी मिलकर ३०+२५+२०+१५+१०+५ = १०५ भंग होते हैं । त्रिकसंयोगी ३५० भंग — त्रिकसंयोगी विकल्प १० होते हैं, यथा – १ - १-४, १-२-३, २-१-३, १-३-२,२-२-२, ३-१-२, १-४-१, २-३-१, ३-२-१ और ४-१-१ । इन १० विकल्पों को रत्नप्रभा के संयोग वाले र. श. बा., र. श. पं., र. श. धू., र. श. त., र. श. अधः, र. बा. पं., र. बा. धू., र. बा. त. बा. अध:, र. पं. धू., र. पं. त., र. पं. अध:, र. धू. त., र. धू. अध:, र. त. अधः, १५ भंगों से गुणा करने पर १५० भंग होते
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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