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अष्टम शतक : उद्देशक-१०
४२३ [५७ प्र.] भगवन् ! जिसके नामकर्म होता है, क्या उसके अन्तरायकर्म होता है और जिसके अन्तरायकर्म होता है, उसके नामकर्म होता है ?
[५७ उ.] गौतम ! जिस जीव के नामकर्म होता है, उसके अन्तरायकर्म होता भी है और नहीं भी होता, किन्तु जिसके अन्तरायकर्म होता है उसके नामकर्म नियमतः होता है।
५८. जस्स णं भंते ! गोयं तस्स अंतराइयं०? पुच्छा।
गोयमा ! जस्स णं गोयं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि सिय नात्थ, जस्स पुण अंतराइयं तस्स गोयं नियमा अत्थि ७।
[५८ प्र.] भगवन् ! जिसके गोत्रकर्म होता है, क्या उसके अन्तरायकर्म होता है और जिस जीव के अन्तरायकर्म होता है, क्या उसके गोत्रकर्म होता है ?
[५८ उ.] गौतम ! जिसके गोत्रकर्म है, उसके अन्तरायकर्म होता भी है और नहीं भी होता, किन्तु जिसके अन्तरायकर्म है, उसके गोत्रकर्म अवश्य होता है।
विवेचन-कर्मों के परस्पर सहभाव की वक्तव्यता-प्रस्तुत १७ सूत्रों (सू. ४२ से ५८ तक) में ज्ञानावरणीय आदि कर्मों को अपने से उत्तरोत्तर कर्मों के साथ नियम से होने अथवा न होने का विचार किया गया है।
___'नियमा' और 'भजना' का अर्थ-ये दोनों जैनागमीय पारिभाषिक शब्द हैं । नियमा का अर्थ हैनियम से, अवश्य और 'भजना' का अर्थ है-विकल्प से, कदाचित्, न होना। प्रस्तुत प्रकरण में चौबीस दण्डकवर्ती जीवों की अपेक्षा से ८ कर्मों की नियमा और भजना समझना चाहिए।
किसमें किन-किन कर्मों की नियमा और भजना-मनुष्य में ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय, इन चार घातिकर्मों की भजना है ( क्योंकि केवली के ये चार घातिकर्म नष्ट हो जाते हैं), जबकि वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र कर्म की नियमा है। शेष २३ दण्डकों में आठ कर्मों की नियमा है। सिद्ध भगवान् में कर्म होते ही नहीं। इस प्रकार आठ कर्मों की नियमा और भजना के कुल २८ भंग समुत्पन्न होते हैं। यथा-ज्ञानावरणीय से ७, दर्शनावरणीय से ६, वेदनीय से ५, मोहनीय से ४, आयुष्य से ३, नामकर्म से २ और गोत्रकर्म से १।
ज्ञानावरणीय से ७ भंग-(१) ज्ञानावरणीय में दर्शनावरणीय की नियमा और दर्शनावरणीय में ज्ञानावरणीय की नियमा, (२) ज्ञानावरणीय में वेदनीय की नियमा, किन्तु वेदनीय में ज्ञानावरणीय की भजना, (३) ज्ञानावरणीय में मोहनीय की भजना, किन्तु मोहनीय में ज्ञानावरणीय की नियमा, (४) ज्ञानावरणीय में आयुष्यकर्म की नियमा, किन्तु आयुष्यकर्म में ज्ञानावरणीय की भजना, (५) ज्ञानावरणीय में नामकर्म की नियमा, किन्तु नामकर्म में ज्ञानावरणीय की भजना, (६) ज्ञानावरणीय में गोत्रकर्म की नियमा, किन्तु गोत्रकर्म में ज्ञानावरणीय की भजना तथा (७) ज्ञानावरणीय में अन्तरायकर्म की नियमा।