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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-१० ४२१ गोयमा ! जस्स वेयणिज्जं तस्स मोहणिज्जं सिय अस्थि सिय नत्थि, जस्स पुण मोहणिज्जं तस्स वेयणिज्जं नियमा अत्थि। [४७ प्र.] भगवन् ! जिस जीव के वेदनीयकर्म है, क्या उसके मोहनीयकर्म है और जिस जीव के मोहनीयकर्म है, क्या उसके वेदनीयकर्म है ? [४७ उ.] गौतम! जिस जीव के वेदनीयकर्म है, उसके मोहनीयकर्म कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं भी होता है, किन्तु जिस जीव के मोहनीयकर्म है, उसके वेदनीयकर्म नियमत: होता है। ४८. जस्स णं भंते ! वेयणिज्जं तस्स आउयं०? एवं एयाणिं परोप्परं नियमा। [४८ प्र.] भगवन् ! जिस जीव के वेदनीयकर्म है, क्या उसके आयुष्यकर्म है और जिसके आयुष्यकर्म है क्या उसके वेदनीयकर्म है ? [४८ उ.] गौतम ! ये दोनों कर्म नियमतः परस्पर साथ-साथ होते हैं। ४९. जहा आउएण समं एवं नामेण वि, गोएण वि समं भाणियव्वं । [४९] जिस प्रकार आयुष्यकर्म के साथ (वेदनीयकर्म के विषय में) कहा, उसी प्रकार नाम और गोत्रकर्म के साथ भी (वेदनीयकर्म के विषय में) कहना चाहिए। ५०. जस्स णं भंते ! वेयणिज्जं तस्स अंतराइयं० ? पुच्छा। गोयमा ! जस्स वेयणिज्जं तस्स अंतराइयं सिय अत्थि सिय नत्थि, जस्स पुण अंतराइयं तस्स वेयणिज्जं नियमा अस्थि ३।। } [५० प्र.] भगवन् ! जिस जीव के वेदनीयकर्म है, क्या उसके अन्तरायकर्म है और जिसके अन्तरायकर्म है, क्या उसके वेदनीयकर्म है ? [५० उ.] गौतम! जिस जीव के वेदनीयकर्म है, उसके अन्तरायकर्म कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं भी होता, परन्तु जिसके अन्तरायकर्म होता है, उसके वेदनीयकर्म नियमतः होता है। ५१. जस्स णं भंते ! मोहणिज्जं तस्स आउयं, जस्स आउयं तस्स मोहणिज्जं? गोयमा ! जस्स मोहणिज्जं तस्स आउयं नियमा अस्थि, जस्स पुण आउयं तस्स पुण मोहणिज्जं सिय अत्थि सिय नत्थि। [५१ प्र.] भगवन् ! जिस जीव के मोहनीयकर्म होता है, क्या उसके आयुष्यकर्म होता है, और जिसके आयुष्यकर्म होता है, क्या उसके मोहनीयकर्म होता है ? [५१ उ.] गौतम! जिस जीव के मोहनीयकर्म है, उसके आयुष्यकर्म अवश्य होता है, किन्तु जिसके
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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