________________
अष्टम शतक : उद्देशक-१०
४१३ गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा—कालवण्णपरिणामे जाव सुक्किल्लवण्णपरिणामे। [२० प्र.] भगवन् ! वर्णपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ?
[२० उ.] गौतम! वह पांच प्रकार का कहा है, यथा-कृष्ण (काला) वर्णपरिणाम यावत् शुक्ल (श्वेत) वर्णपरिणाम।
२१. एएणं अभिलावेणं गंधपरिणामे दुविहे, रसपरिणामे पंचविहे, फासपरिणामे अट्ठविहे।
[२१] इसी प्रकार के अभिलाप द्वारा गन्धपरिणाम दो प्रकार का, रसपरिणाम पांच प्रकार का और स्पर्शपरिणाम आठ प्रकार का जानना चाहिए।
२२. संठाणपरिणामे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा–परिमंडलसंठाणपरिणामे जाव आययसंठाणपरिणामे। [२२ प्र.] भगवन् ! संस्थानपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ?
[२२ उ.] गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार–परिमण्डलसंस्थान परिणाम, यांवत् आयतसंस्थानपरिणाम।
विवेचन–पुद्गलपरिणाम के भेद-प्रभेदों का निरूपण-प्रस्तुत चार सूत्रों में पुद्गलपरिणाम के वर्णादि पांच प्रकार एवं उनके भेदों का निरूपण किया गया है।
पुद्गलपरिणाम की व्याख्या--पुद्गल का एक अवस्था से दूसरी अवस्था में रूपान्तर होना पुद्गलपरिणाम है। इसके मूल भेद पांच और उत्तरभेद पच्चीस हैं। पुद्गलास्तिकाय के एकप्रदेश से लेकर अनन्तप्रदेश तक अष्टविकल्पात्मक प्रश्नोत्तर
२३. एगे भंते ! पोग्गलत्थिकायपएसे किं दव्वं १, दव्वदेसे २, दवाइं ३, दव्वदेसा ४, उदाहु दव्वं च दव्वदेसे य ५, उदाहु दव्वं च दव्वदेसा य ६, उदाहु दव्वाइंच दव्वदेसे य ७, उदाहु दव्वाइंच दव्वदेसा य ८?
गोयमा ! सिय दव्वं, सिय दव्वदेसे, नो दव्वाइं, नो दव्वदेसा, नो दव्वं च दव्वदेसे य, जाव नो दव्वाइं च दव्वदेसा य।
[२३ प्र.] भगवन्! पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश (१) द्रव्य है, (२) द्रव्यदेश है, (३) बहुत द्रव्य है, (४) बहुत द्रव्य-देश है अथवा (५) एक द्रव्य और एक द्रव्यदेश है, या (६) एक द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश हैं, अथवा (७) बहुत द्रव्य और एक द्रव्यदेश है, या (८) बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश हैं।
[२३ उ.] गौतम! वह कथञ्चित् एक द्रव्य है। कथञ्चित् एक द्रव्यदेश है, किन्तु वह बहुत द्रव्य नहीं,
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक ४२०