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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-९ ४०३ अबंधक ही रहता है और शेष समय में बंधक होता है। उत्पत्ति के प्रथम समय में वह सर्वबंधक होता है, जबकि द्वितीय आदि समयों में वह देशबंधक हो जाता है। इसी प्रकार कार्मणशरीर के विषय में भी समझना . चाहिए। शेष शरीरों के साथ बंधक अबंधक आदि का कथन सुगम है, स्वयमेव घटित कर लेना चाहिए। औदारिक आदि पांच शरीरों के देश-सर्वबंधकों एवं अबंधकों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा १२१. एएसि णं भंते ! जीवाणं ओरालिय-वेउव्विय-आहारग-तेया-कम्मासरीरगाणं देसबंधगाणं सव्वबंधगाणं अबंधगाण य कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा आहारगसरीरस्स सव्वबंधगा१। तस्स चेव देसबंधगा संखेज्जगुणा २। वेउव्वियसरीरस्स सव्वबंधगा असंखेजगुणा ३। तस्स चेव देसबंधगा असंखेज्जगुणा ४। तेयाकम्मागाणं दुण्ह वि तुल्ला अबंधगा अणंतगुणा ५। ओरालियसरीरस्स सव्वबंधगा अणंतगुणा ६। तस्स चेव अबंधगा विसेसाहिया ७। तस्स चेव देसबंधगा असंखेज्जगुणा ८। तेया-कम्मगाणं देसबंधगा विसेसाहिया ९। वेउव्वियसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया १०। आहारगसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया ११। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति.। ॥अट्ठमसए : नवमो उद्देसओ समत्तो॥ [१२९ प्र.] भगवन् ! इन औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण शरीर के देशबंधक, सर्वबंधक और अबंधक जीवों में कौन किनसे यावत् (कम, अधिक, तुल्य अथवा) विशेषाधिक हैं ? [१२९ उ.] गौतम! (१) सबसे थोड़े आहारकशरीर के सर्वबंधक जीव हैं, (२) उनसे उसी (आहारकशरीर) के देशबंधक जीव संख्यातगुणे हैं, (३) उनसे वैक्रियशरीर के सर्वबंधक असंख्यातगुणे हैं, (४) उनसे वैक्रियशरीर के देशबंधक जीव असंख्यातगुणे हैं, (५) उनसे तैजस और कार्मण, इन दोनों शरीरों के अबंधक जीव अनन्तगुणे हैं, ये दोनों परस्पर तुल्य है, (६) उनसे औदारिकशरीर के सर्वबंधक जीव अनन्तगुणे हैं, (७) उनसे औदारिकशरीर के अबंधक जीव विशेषाधिक हैं, (८) उनसे उसी (औदारिकशरीर) के देशबंधक असंख्यातगुणे हैं, (९) उनसे तैजस और कार्मणशरीर के देशबंधक जीव विशेषाधिक हैं, (१०) उनसे वैक्रियशरीर के अबंधक जीव विशेषाधिक हैं और (११) उनसे आहारकशरीर के अबंधक जीव विशेषाधिक हैं। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरण करते हैं। विवेचन औदारिकादिशरीरों के देश-सर्वबंधकों और अबंधकों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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