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________________ १२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र और अल्पनिर्जरा वाले हैं, कई जीव अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं, तथा कई जीव अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं। [ २ ] से केणट्ठेणं० गोयमा ! पडिमापडिवन्नए अणगारे महावेदणे महानिज्जरे । छट्ठ-सत्तमासु पुढवीसु नेरइया महावेदणा अप्पनिज्जरा। सेलेसिं पडिवन्नए अणगारे अप्पवेदणे महानिज्जरे । अणुत्तरोववाइयादेवा अप्पवेदणा अप्पनिज्जरा । सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० । [१३-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? [१३-२ उ.] गौतम ! प्रतिमा- प्रतिपन्न (प्रतिमा अंगीकार किया हुआ) अनगार महावेदना और महानिर्ज वाला होता है। छठी-सातवीं नरक-पृथ्वियों के नैरयिक जीव महावेदना वाले, किन्तु अल्पनिर्जरा वाले होते हैं। शैलेशी- अवस्था को प्राप्त अनगार अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं, और अनुत्तरौपपातिक देव अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले होते हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कहकर यावत् गौतम स्वामी विचरण करते हैं । विवेचन — जीवों में वेदना और निर्जरा से सम्बन्धित चतुर्भंगी का निरूपण - प्रस्तुत सूत्र में जीवों में वेदना और निर्जरा की चतुर्भंगी की सहेतुक प्ररूपणा की गई है। चतुर्भंगी– (१) महावेदना- महानिर्जरा वाले, (२) महावेदना-अल्पनिर्जरा वाले, (३) अल्पवेदनामहानिर्जरा वाले और (४) अल्पवेदना-अल्पनिर्जरा वाले जीव । प्रथम उद्देशक की संग्रहणी गाथा १४. महावेदणे य वत्थे कद्दम-खंजणमए य अधिकरणी । तणहत्थेऽयकवल्ले करण महावेदणा जीवा ॥ १ ॥ ॥ छट्ठसयस्स पढमो उद्दसो समत्तो ॥ [१४. गाथा का अर्थ – ] महावेदना, कर्दम और खंजन के रंग से रंगे हुए वस्त्र अधिकरणी (एरण), घास का पूला (तृणहस्तक), लोहे का तवा या कड़ाह, करण और महावेदना वाले जीव; इतने विषयों का निरूपण इस प्रथम उद्देशक में किया गया है। ॥ छठा शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त ॥ १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पणयुक्त), भा-१, पृ. २३३
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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