SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 425
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९४ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१०३ उ.] गौतम! महारम्भ करने से, महापरिग्रह से, पञ्चेन्द्रिय जीवों का वध करने से और मांसाहार करने से तथा नैरयिकायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से नैरयिकायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगबंध होता है। १०४. तिरिक्खजोणियाउयकम्मासरीरप्पयोग. पुच्छा। गोयमा ! माइल्लयाए नियडिल्लयाए अलियवयणेणं कूडतूल-कूडमाणेणं तिरिक्खजोणियकम्मासरीर जाव पयोगबंधे। . [१०४ प्र.] भगवन्! तिर्यञ्चयोनिकआयुष्यकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? [१०४ उ.] गौतम! माया करने से निकृति (परवंचनार्थ चेष्टा या माया को छिपाने हेतु दूसरी गूढ़ माया) करने से, मिथ्या बोलने से, खोटा तौल और खोटा माप करने से तथा तिर्यञ्चयोनिकआयुष्यकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से तिर्यञ्चयोनिकआयुष्यकार्मणशरीर-प्रयोगबंध होता है। १०५. मणुस्सआउयकम्मासरीर. पुच्छा। गोयमा ! पगइभद्दयाए पगइविणीययाए साणक्कोसयाए अमच्छरिययाए मणुस्साउयकम्मा० जाव पयोगबंधे। [१०५ प्र.] भगवन् ! मनुष्यायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? [१०५ उ.] गौतम! प्रकृति की भद्रता से, प्रकृति की विनीतता (नम्रता) से, दयालुता से, अमत्सरभाव से तथा मनुष्यायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से मनुष्यायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगबंध होता है। १०६. देवाउयकम्मासरीर. पुच्छा। गोयमा ! सरागसंजमेणं संजमासंजमेणं बालतवोकम्मेणं अकामनिज्जराए देवाउयकम्मासरीर० जाव पयोगबंधे। । [१०६ प्र.] भगवन् ! देवायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? [१०६ उ.] गौतम! सरागसंयम से, संयमासंयम (देशविरति) से, बाल (अज्ञानपूर्वक) तपस्या से तथा अकामनिर्जरा से एवं देवायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से देवायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगबंध होता है। १०७. सुभनामकम्मासरीर• पुच्छा। गोयमा ! कायउज्जुययाए भावुज्जुययाए भासुज्जुययाए अविसंवादणजोगेणं सुभनामकम्मासरीर० जाव पयोगबंधे। [१०७ प्र.] भगवन् ! शुभनामकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? _ [१०७ उ.] गौतम! काया की ऋजुता (सरलता) से, भावों की ऋजुता से, भाषा की ऋजुता (सरलता) से तथा अविसंवादनयोग से एवं शुभनामकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से शुभनामकार्मणशरीरप्रयोगबंध होता है।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy