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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-९ ३८९ अनन्त-उत्सर्पिणी-अवसर्पिणीकाल होता है, क्षेत्रतः अनन्तलोक देशोन (कुछ कम) अपार्ध (अर्द्ध) पुद्गलपरावर्तन होता है। इसी प्रकार देशबंध का अन्तर भी जानना चाहिए। ८९. एएसिं णं भंते ! जीवाणं आहारगसरीरस्स देसबंधगाणं, सव्वबंधगाणं, अबंधगाण य कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा आहारगसरीरस्स सव्वबंधगा, देशबंधगा संखेज्जगुणा, अबंधगा अणंतगुणा। [८९ प्र.] भगवन् ! आहारकशरीर के इन देशबंधक सर्वबंधक और अबंधक जीवों में कौन किनसे कम यावत् विशेषाधिक हैं ? [८९. उ.] गौतम! सबसे थोड़े आहारकशरीर के सर्वबंधक जीव हैं, उनसे देशबंधक संख्यातगुणे हैं और उनसे अबंधक जीव अनन्तगुणे हैं। विवेचन—आहारकशरीरप्रयोगबंध का विभिन्न पहलुओं से निरूपण—प्रस्तुत सात सूत्रों (सू. ८३ से ८९ तक) में आहारकशरीरप्रयोगबंध, उसका प्रकार, उसकी कालावधि, उसका अन्तरकाल, उसके देश-सर्वबंधकों के अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है। आहारकशरीरप्रयोगबंध के अधिकारी-केवल मनुष्य ही हैं। उनमें भी ऋद्धि (लब्धि)-प्राप्त, प्रमत्त-संयत, सम्यग्दृष्टि, पर्याप्त संख्यातवर्ष की आयु वाले, कर्मभूमि में उत्पन्न, गर्भज मनुष्य ही होते हैं। आहारकशरीरप्रयोगबंध की कालावधि—इसका सर्वबंध एक समय का ही होता है और देशबंध जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त मात्र ही है, क्योंकि इसके पश्चात् आहारकशरीर रहता ही नहीं है। उस अन्तर्मुहूर्त के प्रथम समय में सर्वबंध होता है, तदनन्तर देशबंध। आहारकशरीरप्रयोगबंध का अन्तर–आहारकशरीर को प्राप्त हुआ जीव, प्रथम समय में सर्वबंधक होता है, तदनन्तर अन्तर्मुहूर्त तक आहारकशरीरी रहकर पुनः अपने मूल औदारिकशरीर को प्राप्त हो जाता है। वहाँ अन्तर्मुहूर्त रहने के बाद पुनः संशयादि-निवारण के लिए उसे आहारकशरीर बनाने का कारण उत्पन्न होने पर पुनः आहारकशरीर बनाता है, और उसके प्रथम समय में वह सर्वबंधक ही होता है। इस प्रकार सर्वबंध का अन्तर अन्तर्मुहूर्त का होता है यहाँ इन दोनों अन्तर्मुहूर्त को एक अन्तर्मुहूर्त की विवक्षा करके एक अन्तर्मुहूर्त बताया गया है, तथा उत्कृष्ट अन्तर काल की अपेक्षा अनन्तकाल का-अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल का है और क्षेत्र की अपेक्षा अनन्तलोक-अपार्धपुद्गलपरावर्तन का होता है । देशबंध के अन्तर के विषय में भी इसी प्रकार समझ लेना चाहिए। ___ आहारकशरीर-प्रयोगबंध के देश-सर्वबंधकों का अल्पबहुत्व-आहारकशरीर के सर्वबंधक इसलिए सबसे कम बताए हैं कि उनका समय अल्प ही होता है। उनसे देशबंधक संख्यातगुणे इसलिए बताएं हैं कि देशबंध का काल बहुत है। वे संख्यातगुणे ही होते हैं, असंख्यातगुणे नहीं, क्योंकि मनुष्य ही संख्यात हैं।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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