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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र आदि हेतुओं की अपेक्षा से औदारिकशरीर-प्रयोगनामकर्म के उदय से औदारिकशरीर-प्रयोगबंध होता है।
२८. एगिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? एवं चेव । [२८ प्र.) भगवन् ! एकेन्द्रिय औदारिकशरीर-प्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? [२८ उ.] गौतम! पूर्वोक्त-कथनानुसार यहाँ भी जानना चाहिए। २९. पुढविकाइयएगिदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे एवं चेव । [२९] इसी प्रकार पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबंध के विषय में कहना चाहिए। ३०. एवं जाव वणस्सइकाइया। एवं बेइंदिया। एवं तेइंदिया। एवं चउरिदिया।
[३०] इसी प्रकार वनस्पतिकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबंध तथा द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रियचतुरिन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबंध तक कहना चाहिए।
३१. तिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? एवं चेव। [३१ प्र.] भगवन्! तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? [३१ उ.] गौतम! (इस विषय में भी) पूर्वोक्त कथनानुसार जानना चाहिए। ३२. मणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं?
गोयमा ! वौरियसजोगसद्दव्वयाए पमादपच्चया जाव आउयं च पडुच्च मणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं मणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पओगबंधे।
[३२ प्र.] भगवन् ! मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ?
[३२ उ.] गौतम! सवीर्यता, सयोगता और सद्रव्यता से तथा प्रमाद के कारण यावत् आयुष्य की अपेक्षा से एवं मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-नामकर्म के उदय से मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबंध होता है।
३३. ओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! किं देसबंधे सव्वबंधे ? गोयमा ! देसबंधे वि सव्वबंधे वि। [३३ प्र.] भगवन् ! औदारिकशरीर-प्रयोगबंध क्या देशबंध या सर्वबंध है ? [३३ उ.] गौतम! वह देशबंध भी है और सर्वबंध भी है। ३४. एगिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! किं देसबंधे सव्वबंधे? एवं चेव।