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अष्टम शतक : उद्देशक-९
४. धम्मस्थिकायअन्नमन्त्रअणादीयवीससाबंधे णं भंते ! किं देसबंधे सव्वबंधे ? गोयमा ! देसबंधे, नो सव्वबंधे। [४ प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादिक-विस्रसाबंध क्या देशबंध है या सर्वबंध है ? [४ उ.] गौतम! वह देशबंध है, सर्वबंध नहीं।
५. एवं अधम्मत्थिकायअन्नमन्त्रअणादीयवीससाबंधे वि, एवं आयासत्थिकायअन्नमन्त्रअणादीयवीससाबंधे वि।
[५] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के अन्योन्य-अनादिक-विस्रसाबंध एवं आकाशास्तिकाय के अन्योन्यअनादिक विस्रसाबंध के विषय में भी समझ लेना चाहिए। (अर्थात्—ये देशबंध हैं, सर्वबंध नहीं।) ।
६. धम्मत्थिकायअन्नमनअणाईयवीससाबंधे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! सव्वद्धं। [६ प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादिक विस्रसाबंध कितने काल तक रहता है ? [६ उ.] गौतम ! सर्वाद्धा (सर्वकाल-सर्वदा) रहता है। ७. एवं अधम्मत्थिकाए, एवं आगासस्थिकाए।
[७] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादिक-विस्रसाबंध एवं आकाशास्तिकाय का अन्योन्यअनादिक-विस्रसाबंध भी सर्वकाल रहता है।
८. सादीयवीससाबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा—बंधणपच्चइए भायणपच्चइए परिणामपच्चइए। [८ प्र.] भगवन् ! सादिक-विस्रसाबंध कितने प्रकार का कहा गया है ?
[८ उ.] गौतम! वह तीन प्रकार का कहा गया है। जैसे—(१) बन्धनप्रत्ययिक, (२) भाजनप्रत्ययिक और (३) परिणामप्रत्ययिक।
९.से किं तं बंधणपच्चइए?
बंधणपच्चइए,जंणं परमाणुपुग्मला दुपएसिय-तिपएसिय-जाव-दसपएसिय-संखेन्जपएसियअसंखेज्जपएसिय-अणंतपएसियाणं खंधाणं वेमायनिद्धयाए वेमायलुक्खयाए वेमायनिद्ध-लुक्खयाए बंधपच्चइएणं बंधे समुप्पज्जइ जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेजंकालं।सेतं बंधणपच्चइए।
[९ प्र.] भगवन् ! बंधन-प्रत्ययिक-सादि-विस्रसाबंध किसे कहते हैं ? [९ उ.] गौतम! परमाणु, द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक, यावत् दसप्रदेशिक, संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक