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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा—मइअन्नाणे सुयअन्नाणे विभंगनाणे। [२४ प्र.] भगवन् ! अज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ?
[२४ उ.] गौतम ! अज्ञान तीन प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार—(१) मति-अज्ञान, (२) श्रुत-अज्ञान और (३) विभंगज्ञान।
२५. से किं तं मइअण्णाणे? मइअण्णाणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा—उग्गहे जाव धारणा। [२५ प्र.] भगवन् ! मति-अज्ञान कितने प्रकार का है ?
[२५ उ.] गौतम ! मति-अज्ञान चार प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार—(१) अवग्रह, (२) ईहा, (३) अवाय और (४) धारणा।
२६.[१] से किं तं उग्गहे ? उग्गहे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य। . [२६-१ प्र.] भगवन् ! यह अवग्रह कितने प्रकार का है ?
[२६-१ उ.] गौतम ! अवग्रह दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार—अर्थावग्रह और व्यञ्जनावग्रह।
[२] एवं जहेव आभिणिबोहियनाणं तहेव, नवरं, एगद्वियवजं जाव नोइंदियधारणा, सें तं धारणा। से त्तं मतिअण्णाणे।
[२६-२] जिस प्रकार (नन्दीसूत्र में) आभिनिबोधिकज्ञान के विषय में कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी जान लेना चाहिए। विशेष इतना ही है कि वहाँ आभिनिबोधिकज्ञान के प्रकरण में अवग्रह आदि के एकार्थिक (समानार्थक) शब्द कहे हैं, उन्हें छोड़कर यह 'नोइन्द्रिय-धारणा है', यह हुआ धारणा का स्वरूप, यहाँ तक कहना चाहिए। यह हुआ मति-अज्ञान का स्वरूप।
२७. से कि तं सुयअण्णाणे?
सुतअण्णाणे जं इमं अण्णाणिएहि मिच्छद्दिविएहिं जहा नंदीए जाव चत्तारि वेदा संगोवंगा। से त्तं सुयअनाणे।
[२७ प्र.] भगवन् ! श्रुत-अज्ञान किस प्रकार का कहा गया है ? - [२७ उ.] गौतम ! जिस प्रकार नन्दीसूत्र में कहा गया है—'जो अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों द्वारा प्ररूपित है'; इत्यादि यावत्-सांगोपांग चार वेद श्रुत-अज्ञान है। इस प्रकार श्रुत-अज्ञान का वर्णन पूर्ण हुआ।
२८. से किं तं विभंगनाणे?
विभंगनाणे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहागामसंठिए नगरसंठिए जाव संनिवेससंठिए दीवसंठिए समुद्दसंठिए वाससंठिए वासहरसंठिए पव्वयसंठिए रुक्खसंठिए थूभसंठिए हयसंठिए गयसंठिए नरसंठिए