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________________ २४४ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र उनसे विस्रसापरिणत पुद्गल अनन्तगुणे हैं। ___ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; ऐसा कहकर कर यावत् गौतमस्वामी विचरण करने लगे। विवेचन परिणामों की दृष्टि से पुद्गल का अल्पबहुत्व-प्रस्तुत अन्तिमसूत्र में तीनों परिणामों की दृष्टि से पुद्गलों के अल्पबहुत्व की चर्चा की गई है। सबसे कम और सबसे अधिक पुद्गल-मन-वचन-कायरूप योगों से परिणत पुद्गल सबसे थोड़े हैं, क्योंकि जीव और पुद्गल का सम्बंध अल्पकालिक है । प्रयोगपरिणत पुद्गलों से मिश्रपरिणतपुद्गल अनन्तगुणे हैं, क्योंकि प्रयोगपरिणामकृत आकार को न छोड़ते हुए विस्रसापरिणाम द्वारा परिणामान्तर को प्राप्त हुए मृतकलेवरादि अवयवरूप पुद्गल अनन्तानन्त हैं और विस्रसापरिणत तो उनसे भी अनन्तगुणे हैं, क्योंकि जीव द्वारा ग्रहण न किये जा सकने योग्य परमाणु आदि पुद्गल अनन्तगुणे हैं।' ॥अष्टम शतकः प्रथम उद्देशक समाप्त॥ . १. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ३४०
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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