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________________ अष्टम शतक : उद्देशक - १ दुब्भिगंधपरिणया वि । एवं जहा पण्णवणाए तहेव निरवसेसं जाव जे संठाणओ आयतसंठाणपरिणया ते वण्णओ कालवण्णपरिणया वि जाव लुक्खफासपरिणया वि। २२५ [४५ प्र.] भगवन् ! विस्रसा परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए है ?. [४५ उ.] गौतम ! पांच प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं वर्णपरिणत, गन्धपरिणत, रसपरिणत, स्पर्शपरिणत और संस्थानपरिणत । जो पुद्गल वर्ण- परिणत हैं, वे पाँच प्रकार के कहे गए हैं, यथा—कृष्ण-वर्ण के रूप में परिणत यावत् शुक्ल वर्ण के रूप में परिणत पुद्गल । जो गन्ध- परिणत- पुद्गल हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा— सुरभिगन्ध - परिणत और दुरभिगन्ध-परिणत- पुद्गल । इस प्रकार आगे का सारा वर्णन जिस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र ( के प्रथम पद) में किया गया है, उसी प्रकार यहाँ भी करना चाहिए, यावत् जो पुद्गल संस्थान से आयत- संस्थान - परिणत हैं, वे वर्ण से कृष्ण-वर्ण के रूप में भी परिणत हैं, यावत् (स्पर्श से ) रूक्ष - स्पर्शरूप में भी परिणत हैं। विवेचन — विस्त्रसापरिणत पुद्गलों के भेद-प्रभेदों का निर्देश - प्रस्तुत सूत्र में विस्रसापरिणत (स्वभाव से परिणाम को प्राप्त) पुद्गलों का वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से तथा इन वर्णादि के परस्पर मिश्र होने पर विकल्प की विवक्षा से प्रज्ञापनासूत्र के अतिदेश-पूर्वक अनेक भेद-प्रभेदों का निर्देश किया गया है। मन-वचन-काया की अपेक्षा विभिन्न प्रकार के प्रयोग - मिश्र - विस्त्रसा से एक द्रव्य के परिणमन की प्ररूपणा ४१. एगे भंते ! दव्वे किं पयोगपरिणए ? मीसापरिणए ? वीससापरिणए ? गोयमा ! पयोगपरिणए वा, मीसापरिणएं वा, वीससापरिणए वा । [४१ प्र.] भगवन् ! एक द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होता है, मिश्रपरिणत होता है अथवा विस्त्रसापरिणत होता है ? [४१ उ.] गौतम ! एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है, अथवा मिश्रपरिणत होता है अथवा विस्त्रसापरिणत भी होता है। ५०. जदि पयोगपरिणए किं मणप्पयोगपरिणए ? वंइप्पयोगपरिणए ? कायप्पयोगपरिणए ? गोयमा ! मणप्पयोगपरिणए वा, वइप्पयोगपरिणए वा, कायप्पयोगपरिणए वा । [५० प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य, प्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह मनः प्रयोगपरिणत होता है, वचन- प्रयोग - परिणत होता है, अथवा काय प्रयोगपरिणत होता है ? १. प्रज्ञापनासूत्र प्रथमपद सूत्र १० [१२] (महा. विद्या . ) २. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पणयुक्त) भा. १, पृ. ३२६ (ख) प्रज्ञापनासूत्र, प्रथमपाद, सूत्र १० [१-२]
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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