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________________ २१८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [२९-२] इसी प्रकार अपर्याप्तक-गर्भज-मनुष्य-(पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत-पुद्गलों) के विषय में भी कहना चाहिए। [३] पजत्तगा वि एवं चेव, नवरं सरीरगाणि पंच भाणियव्वाणि। [२९-३] पर्याप्तक गर्भज-मनुष्य-(पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों) के विषय में भी (सामान्यतया) इसी तरह कहना चाहिए। विशेषता यह है कि इनमें (औदारिक से लेकर कार्मण तक) पंचशरीर-(प्रयोगपरिणत पुद्गल) कहना चाहिए। ३०.[१] जे अपजत्तगा असुरकुमारभवणवासि जहा नेरइया तहेव। एवं पजत्तगा वि। [३०-१] जो पुद्गल अपर्याप्तक असुरकुमार-भवनवासीदेव-प्रयोग-परिणत हैं, उनका आलापक नैरयिकों की तरह कहना चाहिए। पर्याप्तक-असुरकुमारदेव-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। [२] एवं दुयएणं भेदेणं जाव थणियकुमारा। · [३०-२] इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त पर्याप्तक-अपर्याप्तक दोनों में कहना चाहिए। ३१. एवं पिसाया जाव गंधव्वा, चंदा जाव ताराविमाणा, सोहम्मो कप्पो जाव अच्चुओ, हेट्ठिमहेट्ठिमगेवेज जाव उवरिमउवरिमगेवेज०, विजय-अणुत्तरोववाइए जाव सव्वट्ठसिद्धअणु०, एक्केक्केणं दुयओ भेदो भाणियव्वो जाव जे पजत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइया जाव परिणया ते वेउव्विय-तेया-कम्मासरीरपयोगपरिणया। दंडगा ३। . [३१] इसी तरह पिशाच से लेकर गन्धर्व तक वाणव्यन्तर-देव, चन्द्र से लेकर ताराविमान पर्यन्त ज्योतिष्क-देव और सौधर्म-कल्प से लेकर अच्युतकल्प पर्यन्त तथा अधःस्तन-अधःस्तन-ग्रैवेयक-कल्पातीतदेव से लेकर उपरितन-उपरितन ग्रैवेयक-कल्पातीत-देव तक एवं विजय-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-देव से लेकर सर्वार्थसिद्ध-कल्पातीत-वैमानिक-देवों तक पर्याप्तक और अपर्याप्तिक दोनों भेदों में वैक्रिय, तैजस और कार्मण-शरीर-प्रयोग-परिणत पुद्गल कहने चाहिए। तीसरा दण्डक पूर्ण हुआ। चतुर्थ दण्डक ३२.[१] जे अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइगएगिंदियपयोगपरिणता ते फासिंदियपयोगपरिणया। [३२-१] जो पुद्गल अपर्याप्तक-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं, वे स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोगपरिणत हैं। [२] जे पज्जत्तासुहुमपुढविकाइया०, एवं चेव। [३२-२] जो पुद्गल पर्याप्तक-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं, वे भी स्पर्शेन्द्रियप्रयोग-परिणत हैं। [३] जे अपजत्ताबादरपुढविक्काइया० एवं चेव।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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