SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८१ सप्तम शतक : उद्देशक-९ महाशिलाकण्टक संग्राम में जय-पराजय का निर्णय ५. णायमेतं अरहता, सुयमेतं अरहया, विण्णामेतं अरहया, महासिलाकंटए संगामे महासिलाकंटए संगामे। महासिलाकंटए णं भंते ! संगामे वट्टमाणे के जयित्था ? के पराजइत्था ? गोयमा ! वजी विदेहपुत्ते जइत्था, नव मल्लई नव लेच्छई कासी-कोसलगा-अट्ठारस वि गणरायाणो पराजइत्था। [५ प्र.] अर्हन्त भगवान् ने यह जाना है, अर्हन्त भगवान् ने यह सुना है—अर्थात्—सुनने की तरह प्रत्यक्ष देखा है, तथा अर्हन्त भगवान् को यह विशेष रूप से ज्ञात है कि महाशिलाकण्टक संग्राम महाशिलाकण्टक संग्राम ही है। (अत: प्रश्न यह है कि) भगवन् ! जब महाशिलाकण्टक संग्राम चल रहा (प्रवर्त्तमान) था, तब उसमें कौन जीता और कौन हारा? [५ उ.] गौतम ! वजी (वजीगण का अथवा वज्री इन्द्र और) विदेहपुत्र कूणिक राजा जीते, नौ मल्लकी और नौ लेच्छकी, जो कि काशी और कौशलदेश के १८ गणराजा थे, वे पराजित हुए। महाशिलाकण्टक-संग्राम के लिए कूणिक राजा की तैयारी और अठारह गणराजाओं पर विजय का वर्णन ६. तए णं से कूणिए राया महासिलाकंटगं संगामं उद्रुितं जाणित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उदाइं हत्थिरायं परिकप्पेह, हय-गय-रहजोहकलियं चातुरंगिणिं सेणं सन्नाहेह, सन्नाहेत्ता जाव मम एतमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह। [६ प्र.] उस समय में महाशिलकण्टक-संग्राम उपस्थिति हुआ जान कर कूणिक राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों (आज्ञापालक सेवकों) को बुलाया। बुला कर उसने इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही 'उदायो' नामक हस्तिराज (पट्टहस्ती) को तैयार करो और अश्व, हाथी, रथ और यौद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना सन्नद्ध (शस्त्रास्त्रादि से सुसज्जित) करो और ये सब करके यावत् (मेरी आज्ञानुसार कार्य करके) शीघ्र ही मेरी आज्ञा मुझे वापिस सौंपो। ७. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कूणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्टा जाव' अंजलि कटु 'एवं सामी ! तह'त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता। खिप्पामेव छेयायरियोवएसमतिकप्पणाविकप्पेहिं सुनिउणेहिं एवं जहा उववातिए जाव भीमं संगामियं अउझं उदाइँ हत्थिरायं परिकप्पेंति हय-गय-जाव सन्नाति, सन्नाहित्ता जेणेव कूणिए राया तेणेव उवा०, तेणेव २ करयल० कूणियस्स रण्णो तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। [७] तत्पश्चात् कूणिक राजा द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर वे कौटुम्बिक पुरुष हृष्ट-तुष्ट हुए, यावत् १. जाव शब्द 'हट्टतुट्टचित्तमाणंदिया नंदिया पीइमणा' इत्यादि पाठ का सूचक
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy