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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सुख और दुःख के कारण को यहाँ सुख-दुःख कहा गया है। संज्ञाओं के दस प्रकार-चौबीस दण्डकों में
कति णं भंते ! सण्णाऔ पण्णत्ताओ?
गोयमा ! दस सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—आहारसण्णा १, भयसण्णा २, मेहुणसण्णा ३, परिग्गहसण्णा ४, कोहसण्णा ५, माणसण्णा ६, मायासण्णा ७, लोभसण्णा ८, ओहसण्णा ९, लोगसण्णा १०।
[५ प्र.] भगवन् ! संज्ञाएँ कितने प्रकार की कही गई हैं ?
[५ उ.] गौतम ! संज्ञाएँ दस प्रकार की कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं—(१) आहारसंज्ञा, (२) भयसंज्ञा, (३) मैथुनसंज्ञा, (४) परिग्रहसंज्ञा, (५) क्रोधसंज्ञा, (६) मानसंज्ञा, (७) मायासंज्ञा, (८) लोभसंज्ञा, (९) ओघसंज्ञा और (१०) लोकसंज्ञा ।
६. एवं जाव वेमाणियाणं। [६] वैमानिकों पर्यन्त चौबीस दण्डकों में ये दस संज्ञाएँ पाई जाती हैं।
विवेचन—संज्ञाओं के दस प्रकार : चौबीस दण्डकों में प्रस्तुत सूत्र में आहारसंज्ञा आदि १० प्रकार की संज्ञाएँ चौबीस दण्डकवर्ती जीवों में बतलाई गई हैं।
संज्ञा की परिभाषाएँ–संज्ञान या आभोग अर्थात् एक प्रकार की धुन को या मोहनीयादि कर्मोदय से आहारादि प्राप्ति की इच्छाविशेष को संज्ञा कहते हैं, अथवा जीव का आहारादि विषयक चिन्तन या मानसिक ज्ञान भी संज्ञा है, अथवा जिस क्रिया से जीव की इच्छा जानी जाए, उस क्रिया को भी संज्ञा कहते हैं।
संज्ञाओं की व्याख्या (१) आहारसंज्ञा–क्षुधावेदनीय के उदय से कवलादि आहारार्थ पुद्गलग्रहणेच्छा,(२)भयसंज्ञा–भयमोहनीय के उदय से व्याकुलचित्त पुरुष का भयभीत होना, कांपना, रोमांचित होना, घबराना आदि, (३) मैथुनसंज्ञा–पुरुषवेदादि (नोकषायरूप वेदमोहनीय) के उदय से स्त्री आदि के अंगों को छूने, देखने आदि की तथा तजनित कम्पनादि, जिससे मैथुनेच्छा अभिव्यक्त हो, (४) परिग्रहसंज्ञालोभरूप कषायमोहनीय के उदय से आसक्तिपूर्वक सचित्त अचित्त द्रव्यग्रहणेच्छा, (५) क्रोधसंज्ञा—क्रोध के उदय से आवेश, रोष रूप परिणाम एवं नेत्र लाल होना, कांपना, मुँह सूखना आदि क्रियायें, (६) मानसंज्ञा—मान के उदय से अहंकारादिरूप परिणाम, (७) मायासंज्ञा-माया के उदय से दुर्भावनावश दूसरों को ठगना, धोखा देना आदि, (८) लोभसंज्ञा–लोभ के उदय से सचित्त-अचित्त पदार्थ प्राप्ति की लालसा, (९) ओघसंज्ञा–मतिज्ञानावरण आदि के क्षयोपशम से शब्द और अर्थ का सामान्यज्ञान अथवा धुन ही धुन में बिना उपयोग के की गई प्रवृत्ति और (१०) लोकसंज्ञा—सामान्य रूप से ज्ञात वस्तु को विशेष रूप से जानना अथवा लोकरूढ़ि या लोकदृष्टि के अनुसार प्रवृत्ति करना लोकसंज्ञा है। ये दसों संज्ञाएँ १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक ३३४