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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र उत्पन्न होने के पश्चात् विविध प्रकार (विमात्रा) से वेदना वेदते हैं।' चौबीस दण्डकवर्ती जीवों में अनाभोगनिवर्तित आयुष्यबंध की प्ररूपणा
१२. जीवा णं भंते ! किं आभोगनिव्वत्तियाउया ? अणभोगनिव्वत्तियाउया ? गोयमा ! नो आभोगनिव्वत्तियाउया, अणाभोगनिव्वत्तियाउया। [१२ प्र.] भगवन् ! क्या जीव आभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले हैं या अनाभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले हैं ? [१२ उ.] गौतम ! जीव आभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले नहीं है, किन्तु अनाभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले
१३. एवं नेरइया वि। [१३] इसी प्रकार नैरयिकों के (आयुष्य) के विषय में भी कना चाहिए। १४. एवं जाव वेमाणिया। [१४] वैमानिकों पर्यन्त इसी तरह कहना चाहिए।
विवेचन–चौबीस दण्डकवर्ती जीवों में अनाभोगनिर्वर्तित आयुष्यबंध की प्ररूपणा–प्रस्तुत त्रिसूत्री में चतुर्विंशति दण्डकों के जीवों में आभोगनिवर्तित आयुष्य-बंध का निषेध करके अनाभोगनिर्वर्तित आयुष्य-बंध की प्ररूपणा की गई है।
आभोगनिर्वर्तित और अनाभोगनिर्वर्तित आयुष्य समस्त सांसारिक जीव अनाभोगपूर्वक (अनजानपने में न जानते हुए) आयुष्य बांधते हैं, वे आभोगपूर्वक (जानपने में जानते हुए) आयुष्य बंध नहीं करते। समस्त जीवों के कर्कश-अकर्कश-वेदनीय कर्मबंध का हेतुपूर्वक निरूपण
१५. अत्थि णं भंते ! जीवा णं कक्कसवेदणिज्जा कम्मा कज्जति ? हंता, अत्थि।
[१५ प्र.] भगवन् ! क्या जीवों के कर्कश वेदनीय (अत्यन्त दुःख से भोगने योग्य-कठोर वेदना वाले) कर्म (का अर्जन) करते (बांधते) हैं ?
[१५ उ.] हाँ, गौतम ! बांधते हैं। १६. कहं णं भंते ! जीवा णं कक्कसवेयणिज्जा कम्मा कजंति ?
गोयमा ! पाणातिवातेणं जाव मिच्छादंसणसल्लेणं, एवं खलु गोयमा ! जीवाणं कक्कसवेदणिज्जा कम्मा कज्जति।
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. १, २९०-२९१