SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र उत्पन्न होने के पश्चात् विविध प्रकार (विमात्रा) से वेदना वेदते हैं।' चौबीस दण्डकवर्ती जीवों में अनाभोगनिवर्तित आयुष्यबंध की प्ररूपणा १२. जीवा णं भंते ! किं आभोगनिव्वत्तियाउया ? अणभोगनिव्वत्तियाउया ? गोयमा ! नो आभोगनिव्वत्तियाउया, अणाभोगनिव्वत्तियाउया। [१२ प्र.] भगवन् ! क्या जीव आभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले हैं या अनाभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले हैं ? [१२ उ.] गौतम ! जीव आभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले नहीं है, किन्तु अनाभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले १३. एवं नेरइया वि। [१३] इसी प्रकार नैरयिकों के (आयुष्य) के विषय में भी कना चाहिए। १४. एवं जाव वेमाणिया। [१४] वैमानिकों पर्यन्त इसी तरह कहना चाहिए। विवेचन–चौबीस दण्डकवर्ती जीवों में अनाभोगनिर्वर्तित आयुष्यबंध की प्ररूपणा–प्रस्तुत त्रिसूत्री में चतुर्विंशति दण्डकों के जीवों में आभोगनिवर्तित आयुष्य-बंध का निषेध करके अनाभोगनिर्वर्तित आयुष्य-बंध की प्ररूपणा की गई है। आभोगनिर्वर्तित और अनाभोगनिर्वर्तित आयुष्य समस्त सांसारिक जीव अनाभोगपूर्वक (अनजानपने में न जानते हुए) आयुष्य बांधते हैं, वे आभोगपूर्वक (जानपने में जानते हुए) आयुष्य बंध नहीं करते। समस्त जीवों के कर्कश-अकर्कश-वेदनीय कर्मबंध का हेतुपूर्वक निरूपण १५. अत्थि णं भंते ! जीवा णं कक्कसवेदणिज्जा कम्मा कज्जति ? हंता, अत्थि। [१५ प्र.] भगवन् ! क्या जीवों के कर्कश वेदनीय (अत्यन्त दुःख से भोगने योग्य-कठोर वेदना वाले) कर्म (का अर्जन) करते (बांधते) हैं ? [१५ उ.] हाँ, गौतम ! बांधते हैं। १६. कहं णं भंते ! जीवा णं कक्कसवेयणिज्जा कम्मा कजंति ? गोयमा ! पाणातिवातेणं जाव मिच्छादंसणसल्लेणं, एवं खलु गोयमा ! जीवाणं कक्कसवेदणिज्जा कम्मा कज्जति। १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. १, २९०-२९१
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy