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________________ १५० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र खेचर पंचेन्द्रिय जीवों के योनिसंग्रह के प्रकार उत्पत्ति के हेतु को योनि कहते हैं, तथा अनेक का कथन एक शब्द द्वारा कर दिया जाए, उसे संग्रह कहते हैं। खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अनेक होते हुए भी उक्त तीन प्रकार के योनिसंग्रह द्वारा उनका कथन किया गया है । अण्डज–अंडे से उत्पन्न होने वाले मोर, कबूतर, हंस आदि। पोतज—जरायु (जड़-जेर) बिना उत्पन्न होने वाले चिमगादड़ आदि। सम्मूर्छिम—माता-पिता के संयोग के बिना उत्पन्न होने वाले मेंढक आदि जीव। जीवाजीवाभिगमोक्त तथ्य—जीवाजीवाभिगमसूत्रानुसार खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच में लेश्या ६, दृष्टि ३, ज्ञान ३, (भजना से), अज्ञान ३ (भजना से), योग ३, उपयोग २ पाये जाते हैं। सामान्यतः ये चारों गति से आते हैं और चारों गतियों में जाते हैं। इनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग है। केवलीसमुद्घात और आहारकसमुद्घात को छोड़कर इनमें पांच समुद्घात पाए जाते हैं। इनकी बारह लाख कुलकोड़ी हैं। इस प्रकरण में अन्तिम सूत्र विजय, वैजयन्त, जयन्त, और अपराजित का है। इन चारों का विस्तार इतना है कि यदि कोई देव नौ आकाशान्तर प्रमाण (८५०७४० १० योजन) का एक डग भरता हुआ छह महीने तक चले तो किसी विमान के अन्त को प्राप्त करता है, किसी विमान के अन्त को नहीं। जीवाजीवाभिगम से विस्तृत वर्णन जान लेना चाहिए। ॥ सप्तम शतक : पंचम उद्देशक समाप्त॥ १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक ३०३ २. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक ३०३ (ग) जीवाजीवाभिगमसूत्र सू.७६ से ९९ तक, पत्रांक १३१ से १३८ तक
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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