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________________ १४८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र का निर्देश किया है। संसारी जीवों के सम्बंध में जीवाजीवाभिगमसूत्रोक्त तथ्य-जीवाजीवाभिगमसूत्र में तिर्यञ्च के दूसरे उद्देशक में जो बातें हैं, उनकी झांकी संग्रहणीगाथा में दी है। (१) संसारी जीवों के ६ भेदों का उल्लेख कर दिया है। तत्पश्चात् (२) पृथ्वीकायिक जीवों के ६ भेद-श्लक्ष्णा, शुद्धपृथ्वी, बालुकापृथ्वी, मनःशिला, शर्करापृथ्वी और खरपृथ्वी। इन सबकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति श्लक्ष्णा की १ हजार वर्ष, शुद्धपृथ्वी की १२ हजार वर्ष, बालुका की १४ हजार वर्ष मनःशिला की १६ हजार वर्ष, शर्करापृथ्वी की १८ हजार वर्ष और खरपृथ्वी की २२ हजार वर्ष की है। (३)स्थिति–नारकों और देवों की जघन्य १० हजार वर्ष, उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की है। तिर्यंच और मनुष्य की जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट ३ पल्योपम की। इसी तरह अन्य जीवों की भवस्थिति प्रज्ञापनासूत्र के चतुर्थ स्थितिपदानुसार जान लें। (४) निर्लेपन तत्काल उत्पन्न पृथ्वीकायिक जीवों को प्रतिसमय एक-एक निकालें तो जघन्य असंख्यात अवसर्पिणीउत्सर्पिणी काल में और उत्कृष्ट भी असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीकाल में निर्लेप (रिक्त) होते हैं, इत्यादि प्रकार से सभी जीवों का निर्लेपन कहना चाहिए।(५)अनगार_जो कि अविशद्ध लेश्यावाला अवधिज्ञानी है, उसके देव-देवी को जानने सम्बन्धी १२ आलापक कहने चहिए।(६)अन्यतीर्थिकों द्वारा एक समय में सम्यक्त्व-मिथ्यात्व क्रियाद्वय करने की प्ररूपणा का खण्डन, एक समय में इन परस्पर विरोधी दो क्रियाओं में से एक ही किया का मण्डन है। इस प्रकार सांसारिक जीव सम्बन्धी वक्तव्यता है।' ॥ सप्तम शतक : चतुर्थ उद्देशक समाप्त॥ १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक ३०२-३०३, (ख) जीवाजीवाभिगमसूत्र, तिर्यञ्च सम्बन्धी उद्देशक २, पृ. १३९ सू. १०० से १०४ तक (ग) प्रज्ञापनासूत्र चतुर्थ स्थितिपद
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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