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सप्तम शतक : उद्देशक-२
१३१ [१६ प्र.] भगवन् ! इन मूलगुणप्रत्याख्यानी आदि जीवों में मनुष्य कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक
[१६ उ.] गौतम ! मूलगुणप्रत्याख्यानी मनुष्य सबसे थोड़े हैं, उनसे उत्तरगुणप्रत्याख्यानी संख्यातगुणा हैं और उनसे अप्रत्याख्यानी मनुष्य असंख्यातगुणा हैं।
विवेचन मूलगुण-उत्तरगुणप्रत्याख्यानी एवं अप्रत्याख्यानी जीवों, पंचेन्द्रियतिर्यंचों और मनुष्यों में अल्पबहुत्व की प्ररूपणा–प्रस्तुत तीन सूत्रों (१४ से १६ तक) में मूलगुणप्रत्याख्यानी आदि समुच्चयजीवों, तिर्यंचपंचेन्द्रियों और मनुष्यों में अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक का विचार किया गया है।
निष्कर्ष-अप्रत्याख्यानी ही सबसे अधिक हैं, समुच्चय जीवों में वे अनन्तगुणे हैं, तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों और मनुष्यों में असंख्यातगुणे हैं। सर्वतः और देशतः मूलोत्तरगुणप्रत्याख्यानी तथा अप्रत्याख्यानी का जीवों तथा चौबीस दण्डकों में अस्तित्व तथा अल्पबहुत्व
१७. जीवाणं भंते ! किं सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी? देशमूलगुणपच्चक्खाणी? अपच्चक्खाणी? गोयमा ! जीवा सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी, देसमूलगुणपच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी वि। [१७ प्र.] भगवन् ! क्या जीव सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी हैं या अप्रत्याख्यानी
[१७ उ.] गौतम ! जीव (समुच्चय में) सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी भी हैं, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी भी हैं और अप्रत्याख्यानी भी हैं।
१८. नेरइयाणं पुच्छा। गोयमा ! नेरतिया नो सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी, नो देसमूलगुणपच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी।
[१८ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीवों के विषय में भी यही प्रश्न है।
[१८ उ.] गौतम ! नैरयिक जीव न तो सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी हैं और न ही देशमूलगुण प्रत्याख्यानी हैं, वे अप्रत्याख्यानी हैं।
१९. एवं जाव चउरिदिया। [१९] इसी तरह चतुरिन्द्रियपर्यन्त कहना चाहिए। २०. पंचेंदियतिरिक्ख पुच्छा।
गोयमा! पंचेंदियतिरिक्खा नो सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी, देसमूलगुणपच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि।