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छठा शतक : उद्देशक-८ कहलाती है। (६) अनुभागनामनिधत्तायु–अनुभाग अर्थात् आयुष्यकर्म के द्रव्यों का विपाक, तद्प जो नाम (परिणाम), वह है—अनुभागनाम अथवा अनुभागरूप जो नामकर्म वह है—अनुभागनाम। उसके साथ निधत्त जो आयु वह 'अनुभागनामनिधत्तायु' कहलाती है।
आयुष्य जात्यादिनामकर्म से विशेषित क्यों ? – यहाँ आयुष्यबंध को विशेष्य और जात्यादि नामकर्म को विशेषण रूप से व्यक्त किया गया है, उसका कारण यह है कि जब नारकादि आयुष्य का उदय होता है, तभी जात्यादि नामकर्म का उदय होता है। अकेला आयुकर्म ही नैरयिक आदि का भवोपग्राहक है। इसीलिए यहाँ आयुष्य की प्रधानता बताई गई है।
आयुष्य और बंध दोनों में अभेद—यद्यपि प्रश्न यहाँ आयुष्यबंध के प्रकार के विषय में हैं, किन्तु उत्तर है—आयुष्य के प्रकार का; तथापि आयुष्यबंध इन दोनों में अव्यतिरेक-अभेदरूप है । जो बंधा हुआ हो, वही आयुष्य, इस प्रकार के व्यवहार के कारण यहाँ आयुष्य के साथ बंध का भाव सम्मिलित है।
नामकर्म से विशेषित १२ दण्डकों की व्याख्या (१) जातिनामनिधत्त आदि–जिन जीवों ने जातिनाम निषिक्त किया है, अथवा विशिष्ट बंधवाला किया है, वे जीव 'जातिनामनिधत्त' कहलाते हैं। इसी प्रकार गतिनामनिधत्त, स्थितिनामनिधत्त, अवगाहनानामनिधत्त, प्रदेशनामनिधत्त, और अनुभागनामनिधत्त, इन सबकी व्याख्या जान लेनी चाहिए। (२) जातिनामनिधत्तायु-जिन जीवों ने जातिनाम के साथ आयुष्य को निधत्त किया है, उन्हें 'जातिनामनिधत्तायु' कहते हैं। इसी तरह दूसरे पदों का अर्थ भी समझ लेना चाहिए। (३) जातिनामनियुक्त-जिन जीवों ने जातिनाम को नियुक्त (सम्बद्धनिकाचित) किया है, अथवा वेदन प्रारम्भ किया है, वे। इसी तरह दूसरे पदों का अर्थ जान लेना चाहिए। (४) जातिनामनियुक्त-आयु–जिन जीवों के जातिनाम के साथ आयुष्य नियुक्त किया है, अथवा उसका वेदन प्रारम्भ किया है, वे। इस प्रकार अन्य पदों का अर्थ भी जान लेना चाहिए। (५)जातिगोत्रनिधत्त—जिन जीवों ने एकेन्द्रियादिरूप जाति तथा गोत्र-एकेन्द्रियादि जाति के योग्य नीचगोत्रादि को निधत्त किया है, वे। इसी प्रकार अन्य पदों का अर्थ भी समझ लेना चाहिए। (६)जातिगोत्रनिधत्तायु-जिन जीवों ने जाति और गोत्र के साथ आयुष्य को निधत्त किया है, वे। इसी प्रकार अन्य पदों का अर्थ भी समझ लेना चाहिए। (७) जातिगोत्रनियुक्त—जिन जीवों ने जाति और गोत्र को नुियक्त किया है, वे। (८) जातिगोत्रनियुक्तायुजिन जीवों ने जाति और गोत्र के साथ आयुष्य को नियुक्त कर लिया है, वे । इसी तरह अन्य पदों का अर्थ समझ लेना चाहिए। (९) जातिनाम-गोत्र-निधत्त—जिन जीवों ने जाति नाम और गोत्र को निधत्त किया है, वे। इसी प्रकार दूसरे पदों का अर्थ भी जान लें। (१०) जाति-नाम-गोत्रनिधत्तायु-जिन जीवों ने जाति नाम
और गोत्र के साथ आयुष्य को निधत्त कर लिया है, वे। इसी प्रकार अन्य पदों का अर्थ भी जान लेना चाहिए। (११)जाति-नाम-गोत्र-नियुक्त-जिन जीवों ने जाति नाम और गोत्र को नियुक्त किया है, वे। इसी प्रकार दूसरे पदों का अर्थ भी समझ लें।(१२) जाति-नाम-गोत्र-नियुक्तायु-जिन जीवों ने जाति नाम और गोत्र के साथ आयुष्य को नियुक्त किया है, वे। इसी तरह अन्य पदों का अर्थ भी समझ लेना चाहिए।' १. (क) भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २८०-२८१
(ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा-२, पृ. १०५३ से १०५६ तक।