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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ८. एएणं सागरोवमपमाणेणं चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा १. तिि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमा २, दो सागरोवमकोडाकोडी कालो सुसमदूसमा ३, एगा सागरोवमकोडाकोडी बायालीसाए वासहस्सेहिं ऊणिया कालो दूसमसुसमा ४, एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दूसमा ५, एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दूसमदूसमा ६ । पुणरवि उस्सप्पिणीए एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दूसमदूसमा १ । एक्कवीसं वाससहस्साइं जाव' चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा ६ । दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी! दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणी । वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी य उस्सप्पिणी य । ७८ [८] इस सागरोपम-परिमाण के अनुसार ( अवसर्पिणकाल में) चार कोटाकोटि सागरोपमकाल का एक सुषम-सुषमा आरा होता है; तीन कोटाकोटि सागरोपम-काल का एक सुषमा आरा होता है; दो कोटाकोटि सागरोपम-काल का एक सुषमदुःषमा आरा होता है; बयालीस हजार वर्ष कम एक कोटाकोटि साग़रोपमकाल का एक दु:षमासुःषमा आरा होता है; इक्कीस हजार वर्ष का एक दु:षम आरा होता है और इक्कीस हजार वर्ष का दु:षमदुःषमा आरा होता है । इसी प्रकार उत्सर्पिणीकाल में पुन: इक्कीस हजार वर्ष परिमित काल का प्रथम दु:षमदुःषमा आरा होता है। इक्कीस हजार वर्ष का द्वितीय दुःषम आरा होता है, बयालीस हजार वर्ष कम एक कोटाकोटि सागरोपमकाल का तीसरा सु:षम-दुषमा आरा होता है, दो कोटाकोटि सागरोपम-काल का चौथ सुषम-दुःषमा आरा होता है। तीन कोटाकोटि सागरोपम-काल का पांचवा सुषम आरा होता है और चार कोटाकोटि सागरोपम्काल का छठा सुषम- सुषमा आरा होता है। इस प्रकार (कुल) दस कोटाकोटि सागरोपम - काल का एक अवसर्पिणीकाल होता है और दस कोटाकोटि सागरोपम-काल का ही उत्सर्पिणीकाल होता है । यों बीस कोटाकोटि सागरोपमकाल का एक अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी-कालचक्र होता है । विवेचन —–औपमिककाल का परिमाण— प्रस्तुत दो सूत्रों में से प्रथमसूत्र में पल्योपम एवं सागरोपम काल का परिमाण तथा द्वितीय सूत्र में अवसर्पिणी- उत्सर्पिणी रूप द्वादश आरे सहित कालचक्र का परिमाण बताया गया है। - पल्योपम का स्वरूप और प्रकार - यहाँ जो पल्योपम का स्वरूप बतलाया गया है, वह व्यवहार अद्धापल्योपम का स्वरूप बताया गया है । पल्योपम के मुख्य तीन भेद हैं- (१) उद्धार पल्योपम, (२) अद्धापल्योपम और (३) क्षेत्रपल्योपम। उद्धारपल्योपम आदि के प्रत्येक के दो प्रकार हैं—व्यवहार उद्धारपल्योपम एवं सूक्ष्म उद्धारपल्योपम, व्यवहार अद्धापल्योपम एवं सूक्ष्म अद्धापल्योपम, तथा व्यवहार क्षेत्रपल्योपम एवं सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम। उद्धारपल्योपम - उत्सेधांगुल परिमाण से एक योजन लम्बे, एक योजन चौड़े और एक योजन ऊँचे - १. 'जाव' पद यहाँ अवसर्पिणीकाल की गणना की तरह ही उत्सर्पिणीकाल-गणना का बोधक है।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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