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छठा शतक : उद्देशक-६
६. जहा पुढविकाइया तहा एगिंदियाणं सव्वेसिं एक्केक्कस्स छ आलावगा भाणियव्वा। __ [६] जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार से सभी एकेन्द्रिय जीवों के विषय में एक-एक के छह-छह आलापक कहने चाहिए।
७. जीवे णं भंते ! मारणंतियसमुग्घातेणं समोहते, २ त्ता जे भविए असंखेजेसु बेइंदियावाससयसहस्सेसु अन्नतरंति बेइंदियावासंसि बेइंदियत्ताए उववजित्तए से णं भंते !
तत्थगते चेव० जहा नेरइया। एवं जाव अणुत्तरोववातिया।
[७ प्र.] भगवन् ! जो जीव मारणान्तिक-समुद्घात से समवहत हुआ है और समवहत होकर द्वीन्द्रिय जीवों के असंख्येय लाख आवासों में से किसी एक आवास में द्वीन्द्रिय रूप में उत्पन्न होने वाला है; भगवन् ! क्या वह जीव वहाँ जा कर ही आहार करता है, उस आहार को परिणमाता है, और शरीर बांधता है ?
[७ उ.] गौतम ! जिस प्रकार नैरयिकों के लिए कहा गया, उसी प्रकार द्वीन्द्रिय जीवों से लेकर अनुत्तरौपपातिक देवों तक सब जीवों के लिए कथन करना चाहिए।
८. जीवे णं भंते ! मारणंतियसमुग्धातेणं समोहते, २ जे भविए एवं पंचसु अणुत्तरेसु महतिमहालएसु महाविमाणेसु अन्नयरंसि अनुत्तरविमाणंसि अणुत्तरोववाइयदेवत्ताए उववज्जित्तए, सेणं भंते।
तत्थगते चेव जाव आहारेज वा, परिणामेज वा, सरीरं वा बंधेजा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०।
॥छट्टे सए छट्ठो उद्देसो समत्तो॥ [८ प्र.] हे भगवन् ! जो जीव मारणान्तिक-समुद्घात से समवहत हुआ है और समवहत हो कर महान् से महान् महाविमानरूप पंच अनुत्तरविमानों में से किसी एक अनुत्तरविमान में अनुत्तरौपपातिक-देव रूप में उत्पन्न होने वाला है, क्या वह जीव वहाँ जा कर ही आहार करता है, आहार को परिणमाता है और शरीर बांधता है।
[८ उ.] गौतम ! पहले कहा गया है, उसी प्रकार कहना चाहिए,........यावत् आहार करता है, उसे परिणमाता है और शरीर बांधता है ?
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवान् यह इसी प्रकार है, ऐसा कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरण करते हैं।
विवेचन–चौवीस दण्डकों में मारणान्तिकसमुद्घतसमवहत जीव की आहारादि-प्ररूपणाप्रस्तुत छह सूत्रों में यह शंका प्रस्तुत की गई है कि नारकदण्डक से लेकर अनुत्तरौपपातिक देवों तक मारणान्तिक