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१५. श्मशान • श्मशानभूमि के चारों ओर सौ-सौ हाथ पर्यन्त अस्वाध्याय माना जाता है। चन्द्रग्रहण होने पर जघन्य आठ, मध्यम बारह और उत्कृष्ट सोलह प्रहर पर्यन्त
१६. चन्द्रग्रहण
स्वाध्याय नहीं करना चाहिये ।
१७. सूर्यग्रहण - सूर्यग्रहण होने पर भी क्रमशः आठ, बारह और सोलह प्रहर पर्यन्त अस्वाध्यायकाल माना गया है
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१८. पतन किसी बड़े मान्य राजा अथवा राष्ट्रपुरुष का निधन होने पर जब तक उसका दाहसंस्कार न हो, तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिये । अथवा जब तक दूसरा अधिकारी सत्तारूढ़ न हो, तब तक शनै: शनै: स्वाध्याय करना चाहिये ।
१९. राजव्युद्ग्रह समीपस्थ राजाओं में परस्पर युद्ध होने पर जब तक शान्ति न हो जाये, तब तक और उसके पश्चात् भी एक दिन रात्रि स्वाध्याय नहीं करें।
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२०. औदारिक शरीर उपाश्रय के भीतर पंचेन्द्रिय जीव का वध हो जाने पर जब तक कलेवर पड़ा रहे, तब तक तथा १०० हाथ तक यदि निर्जीव कलेवर पड़ा हो तो स्वाध्याय नहीं करना चाहिये ।
अस्वाध्याय के उपरोक्त १० कारण औदारिकशरीर संबंधी कहे गये हैं ।
२१-२८. चार महोत्सव और चार महाप्रतिपदा
आषाढ- पूर्णिमा, आश्विन - पूर्णिमा, कार्तिकपूर्णिमा और चैत्र पूर्णिमा ये चार महोत्सव हैं। इन पूर्णिमाओं के पश्चात् आने वाली प्रतिपदा को महाप्रतिपदा कहते हैं । इनमें स्वाध्याय करने का निषेध है ।
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२९-३२. प्रातः, सायं, मध्याह्न और अर्धरात्रि प्रातः सूर्य उगने से एक घड़ी पहले तथा एक घड़ी पीछे। सूर्यास्त होने से एक घड़ी पहले तथा एक घड़ी पीछे । मध्याह्न अर्थात् दोपहर में एक घड़ी आगे तथा एक घड़ी पीछे एवं अर्धरात्रि में भी एक घड़ी आगे तथा एक घड़ी पीछे स्वाध्याय नहीं करना चाहिये ।
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