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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र वाणव्यन्तर देवों के आठ भेद किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच।
ज्योतिष्क देवों के पांच भेद—सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारे।
वैमानिक देवों के दो भेद कल्पोपपन्न और कल्पातीत। पहले से लेकर बारहवें देवलोक तक के देव 'कल्पोपन्न' और उनसे ऊपर नौ ग्रैवेयक एवं पंच अनुत्तरविमानवासी देव 'कल्पातीत' कहलाते हैं।
किमियं रायगिहं ति य, उज्जोए अंधकार-समए य।
पासंतिवासि-पुच्छा, राइंदिय देवलोगा य॥ उद्देशक की संग्रह-गाथा
[१८. गाथार्थ-] राजगृह नगर क्या है ? दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार क्यों होता है ? समय आदि काल का ज्ञान किन जीवों को होता है, किनको नहीं ? रात्रि-दिवस के विषय में पार्श्वजिनशिष्यों के प्रश्न और देवलोक विषयक प्रश्न; इतने विषय इस नौवें उद्देशक में कहे गए हैं। .
॥ पंचम शतक : नवम उद्देशक समाप्त ॥
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(क) तत्त्वार्थसूत्र अ. ४ सू. ११, १२, १३, १७-१८ (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. २, पृ. ९२९