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________________ ५०४] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सप्रदेश-अप्रदेश पुद्गलों का अल्प-बहुत्व-सबसे थोड़े एक गुण काला आदि भाव से अप्रदेशी पुद्गल हैं, उनसे असंख्यात गुणा हैं-एक समय की स्थितिवाले-काल से अप्रदेशी पुद्गल। उनसे असंख्यातगुणा हैं-समस्त परमाणु पुद्गल, जो द्रव्य से अप्रदेशी पुद्गल हैं, उनसे भी असंख्यात गुणे हैं-क्षेत्र से अप्रदेशी पुद्गल, जो एक-एक आकाशप्रदेश के अवगाहन किये हुए हैं। उनसे भी असंख्यातगुण हैं-क्षेत्र से सप्रदेशी पुद्गल, जिनमें द्विप्रदेशावगाढ़ से लेकर असंख्येयप्रदेशावगाढ़ आते हैं। उनसे द्रव्य से सप्रदेशी पुद्गल-अर्थात्-द्विप्रदेशस्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक के पुद्गल विशेषाधिक हैं। उनसे काल से सप्रदेशी पुद्गल-दो समय की स्थिति वाले से लेकर असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गल विशेषाधिक हैं। उनमें भी भाव से सप्रदेशी पुद्गल-दो गुण काले यावत् अनन्तगुणकाले पुद्गल आदि विशेषाधिक हैं । संसारी और सिद्ध जीवों की वृद्धि हानि और अवस्थिति एवं उनके कालमान की प्ररूपणा १०. 'भंते!' त्ति भगवं गोतमे समणं जाव एवं वदासी-जीवा णं भंते! किं वड्ढंति, हायंति, अवट्ठिया ? गोयमा! जीवा णो वड्ढेति, नो हायंति, अवट्ठिता। [१० प्र.] 'भगवन्!' यों कह कर भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से - यावत् इस प्रकार पूछा-भगवन् ! क्या जीव बढ़ते हैं या घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ? [१० उ.] गौतम! जीव न बढ़ते हैं, न घटते हैं, किन्तु अवस्थित रहते हैं। ११. नेरतिया णं भंते! किं वड्ढंति, हायंति, अवट्टिता? गोयमा! नेरइया वड्ढंति वि, हायंति वि, अवट्ठिया वि। [११ प्र.] भगवन्! क्या नैरयिक बढ़ते हैं, घटते हैं, अथवा अवस्थित रहते हैं ? [११ उ.] गौतम! नैरयिक बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी रहते हैं। १२. जहा नेरइया एवं जाव वेमाणिया। [१२] जिस प्रकार नैरयिकों के विषय में कहा, इसी प्रकार वैमानिक-पर्यन्त (चौबीस ही दण्डकों के जीवों के विषय में) कहना चाहिए। १३. सिद्धा णं भंते! ० पुच्छा। गोयमा! सिद्धा वड्ढंति, नो हायंति, अवट्ठिता वि। [१३ प्र.] भगवन्! सिद्धों के विषय में मेरी पृच्छा है (कि वे बढ़ते हैं, घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ?) [१३ उ.] गौतम! सिद्ध बढ़ते हैं, घटते नहीं, वे अवस्थित भी रहते हैं। १. (क) भगवती अ. वृत्ति, पत्रांक २४३ (ख) भगवती (हिन्दी विवेचन) भा. २, पृ. ९०१
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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