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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र . सातवां और आठवां सूत्र अवधिज्ञानी मनःपर्यायज्ञानी छद्मस्थ की अपेक्षा से है—वे अहेतु व्यवहार करने वाले जीव सर्वथा अहेतु से नहीं जानते, अपितु कथंचित् जानते हैं, कथंचित् नहीं जानतेदेखते। अध्यवसानादि उपक्रम कारण न होने से अहेतुमरण, किन्तु छद्मस्थमरण (केवलिमरण नहीं)
होता है।
इन आठ सूत्रों के विषय में वृत्तिकार अभयदेवसूरि स्वयं कहते हैं कि हमने अपनी समझ के अनुसार इन हेतुओं का शब्दशः अर्थ कर दिया है, इनका वास्तविक भावार्थ बहुश्रुत ही जानते हैं। १
॥ पंचम शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त।
१. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २३९
(ख) 'गमनिकामात्रमेवेदम् अष्टानामपि सूत्राणाम्, भावार्थ तु बहुश्रुता विदन्ति।' -भ.अ. वृत्ति, पत्रांक २३९