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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[ २ ] एवं जाव असंखेज्जपदेसोगाढे।
[२४-२] इसी तरह (द्विप्रदेशावगाढ़ सकम्प पुद्गल से लेकर) यावत् असंख्यप्रदेशावगाढ़ तक का अन्तर कहना चाहिए।
२५. [१] एगपदेसोगाढस्स णं भंते! पोग्गलस्स निरेयस्स अंतरं कालतो केवचिरं
होइ ?
गोमा ! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं ।
[२५-१ प्र.] भगवन्! एकप्रदेशावगाढ़ निष्कम्प पुद्गल का अन्तर कालतः कितने काल का
होता है ?
[२५ - १ उ.] गौतम ! जघन्यतः एक समय का और उत्कृष्टतः आवलिका के असंख्येय भाग का अन्तर होता है।
[ २ ] एवं जाव असंखेज्जपएसोगा ।
[२५-२] इसी तरह (द्विप्रदेशावगाढ़ निष्कम्प पुद्गल से लेकर) यावत् असंख्येयप्रदेशवगाढ़ तक कहना चाहिए ।
२६. वण्ण-गंध-रस-फास - सुहुमपरिणय- बादरपरिणयाणं एतेसिं जच्चेव संचट्टिणा तं चेव अंतरं पि भाणियव्वं ।
[२६] वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्शगत, सूक्ष्मपरिणत एवं बादरपरिणत पुद्गलों का जो संस्थितिकाल (संचिट्ठणाकाल) कहा गया है, वही उनका अन्तरकाल समझना चाहिए ।
२७. सद्दपरिणयस्स णं भंते! पोग्गलस्स अंतरं कालतो केवचिरं होइ ?
गोयमा ! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं ।
[२७ प्र.] भगवन्! शब्दपरिणत पुद्गल का अन्तर काल की अपेक्षा कितने काल का होता है? [२७ उ.] गौतम! जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट असंख्येय काल का अन्तर होता है। २८. असद्दपरिणयस्स णं भंते! पोग्गलस्स अंतरं कालओ केवचिरं होइ ? गोमा ! जहां एगं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं । [२८ प्र.] भगवन्! अशब्दपरिणत पुद्गल का अन्तर कालतः कितने काल का होता है ? [ २८ उ.] गौतम ! जघन्य एक समय का और उत्कृष्टतः आवलिका के असंख्येय भाग का अन्तर
होता है।
विवेचन—– विविध पुद्गलों का अन्तर- काल —— प्रस्तुत सात (सू. २२ से २८ तक) सूत्रों में परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशीस्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी तक के सामान्य अन्तर - काल का तथा सकम्प,