________________
४६८ ]
[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
न हो तो नहीं लगती) । विक्रेता गृहस्थ को तो ( मिथ्यादर्शन - प्रत्ययिकी क्रिया की भजना के साथ) ये सब क्रियाएँ प्रतनु (अल्प) होती हैं।
[८-१ प्र.] भगवन्! भाण्ड - विक्रेता गृहस्थ से खरीददार ने कितने का माल खरीद लिया, किन्तु जब तक उस विक्रेता को उस माल का मूल्यरूप धन नहीं मिला, तब तक, हे भगवन् ! उस खरीददार को उस अनुपनीत धन से कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? (साथ ही उस विक्रेता को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ?
८[ १ ] गाहावतिस्स णं भंते! भंडं जाव धणे य' से अणुवणीए सिया० ? एपि जहा 'भंडे उवणीते' तहा नेयव्वं ।
[८ - १ उ.] गौतम ! यह आलापक भी उपनीत भाण्ड (खरीददार द्वारा ले जाए जाने वाले किराने) के आलापक के समान समझना चाहिए ।
[ २ ] चउत्थो आलावगोधणे य से उवणीए सिया जहा पढमो आलावगो 'भंडे य से अणुवणीए सिया' तहा नेयव्वो । पढम-चउत्थाणं एक्को गमो । बितिय ततियाणं एक्को गमो ।
[८-२] चतुर्थ आलापक यदि धन उपनीत हो तो प्रथम आलापक, (जो कि अनुपनीत भाण्ड के विषय में कहा है) के समान समझना चाहिए। (सारांश यह है कि) पहला और चौथा आलापक समान है, इसी तरह दूसरा और तीसरा आलापक समान है।
विवेचन—विक्रेता और क्रेता को विक्रेय माल से लगने वाली क्रियाएँ प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. ५ से ८ तक) में भाण्ड - विक्रेता और खरीददार को किराने के माल (भाण्ड ) - सम्बन्धी विभिन्न अवस्थाओं में लगने वाली क्रियाओं का निरूपण किया गया है।
छह प्रतिफलित तथ्य – (१) किराना बेचने वाले का किराना (माल) कोई चुरा ले जाए तो उस किराने को खोजने में विक्रेता को आरम्भिकी आदि ४ क्रियाएँ लगती हैं, परन्तु मिथ्यादर्शन- प्रत्ययिकी क्रिया, कदाचित् लगती है, कदाचित् नहीं लगती। (२) यदि चुराया हुआ किराने का माल वापस मिल
१.
२.
धन से सम्बन्धित प्रथम आलापक इस प्रकार कहना चाहिए
“गाहावइस्सा णं भंते! भंडं विक्किणमाणस्स कइए भंड साइज्जेज्जा, धणे य से अणुवणीए सिया, कइयस्स णं ताओ धणाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ ५? गाहवइस्स य ताओ धणाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ ५? गोयमा ! कइयस्स ताओ धणाओ हेट्ठिल्लाओ चत्तारि किरियाओ कज्जंति, मिच्छादंसणकिरिया भयणाए। गाहावइस्स णं ताओ सव्वाओ पतणुईभवंति ।"
-भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २२९
धन से सम्बन्धित चतुर्थ आलापक इस प्रकार कहना चाहिए— "गाहावइस्स णं भंते! भंडं विक्किणमाणस्स कइए भंड साइज्जेज्जा धणे य से उवणीए सिया, गाहावइस्स णं भंते! ताओ धणाओ कि आरंभिया किरिया कज्जइ ५ ? कइयस्स वा ताओ धणाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ ५? गोयमा ! गाहावइस्स ताओ धणाओ आरंभिया ५, मिच्छादंसणवत्तिया सिय कज्जइ, सिय नो कज्जइ । कइयस्स णं ताओ सव्वाओ पयणुईभवंति ।" -भगवतीसूत्र अ. वृत्ति पत्रांक २२९