________________
पंचम शतक : उद्देशक - ४]
[ ४५७
है। तालाब आदि में फटी हुई दरार के समान पुद्गलों के भेद को 'अनुतटिकाभेद' कहते हैं। एरण्ड के बीज के समान पुद्गलों के भेद को 'उत्कारिकाभेद' कहते हैं।
लब्ध, प्राप्त और अभिसमन्वागत की प्रकरणसंगत व्याख्या लब्ध - लब्धिविशेष द्वारा ग्रहण करने योग्य बनाये हुए, प्राप्त-लब्धि - विशेष द्वारा ग्रहण किये हुए, अभिसमन्वागत घटादि रूप से परिणमाने के लिए प्रारम्भ किये हुए। इन तीनों के द्वारा चतुर्दशपूर्वधारी श्रुतकेवली एक घट आदि से हजार घट आदि आहारक शरीर की तरह बनाकर मनुष्यों को दिखला सकता है।
१.
॥ पंचम शतक : चतुर्थ उद्देशक समाप्त ॥
भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २२४