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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
अनेक चावलों के पकाने का अनुामन, सामान्यदृष्टवत् तथा अनेक पुरुषों के बीच में अपने परिचित विशिष्ट व्यक्ति को जानना विशेषदृष्टवत् है । इसके भी अतीतकालग्रहण, वर्तमानकालग्रहण और अनागतकालग्रहण ये तीन भेद हैं।
उपमान (उपमा ) के दो भेद — साधर्म्य से उपमा, वैधर्म्य से उपमा । साधर्म्य और वैधर्म्य उपमान के भी तीन-तीन भेद हैं— किंचित्साधर्म्य, प्राय: साधर्म्य और सर्वसाधर्म्य, किंचित्वैधर्म्य, प्रायः वैधर्म्य और सर्ववैधर्म्य |
आगम के दो भेद — लौकिक आगम और लोकोत्तर- आगमप्रमाण । केवली के प्रकृष्ट मन-वचन को जानने-देखने में समर्थ वैमानिक देव
२९. केवली णं भंते! पणीतं मणं वा, वइं वा धारेज्जा ?
हंता, धारेज्जा ।
[२९ प्र.] भगवन्! क्या केवली प्रकृष्ट (प्रणीत = प्रशस्त ) मन और प्रकृष्ट वचन धारण करता
है ?
[२९ उ.] हाँ, गौतम ! धारण करता है ।
३०. [ १ ] जे णं भंते! केवली पणीयं मणं वा वई वा धारेज्जा तं णं वेमाणिया देवा जाणंति, पासंति ?
गोयमा ! अत्थेगइया जाणंति पासंति, अत्थेगइया न जाणंति न पासंति ।
[३०-१ प्र.] भगवन्! केवली जिस प्रकार प्रकृष्ट मन और प्रकृष्ट वचन को धारण करता है, क्या उसे वैमानिक देव जानते-देखते हैं ?
[३० - १ उ.] गौतम ! कितने ही (वैमानिक देव उसे) जानते-देखते हैं, और कितने ही (देव) नहीं जानते-देखते ।
[२] से केणट्ठेणं जाव न जाणंति न पासंति?
गोयमा ! वेमाणिया देवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा— मायिमिच्छादिट्टिउववन्नगाय, अमायिसम्मद्दिविवन्नाय । एवं अनंतर परंपर-पज्जात्ताऽपज्जत्ता य उवउत्ता अणुवउत्ता । तत्थ णं जे ते उवत्ता ते जाणंति पासंति । से तेणट्ठेणं० तं चेव ।
"
[३०-२ प्र.] भगवन्! कितने ही देव यावत् जानते-देखते हैं, कितने ही नहीं जानते-देखते; ऐसा किस कारण से कहा जाता है ?
[३० - १ उ.] गौतम ! वैमानिक देव दो प्रकार के कहे गए हैं; वे इस प्रकार हैं— मायी
१.
(क) अनुयोगद्वारसूत्र, ज्ञानगुणप्रमाण- प्रकरण पृ. २११ से २१९ तक
(ख) भगवतीसूत्र, (टीकानुवाद-टिप्पणयुक्त) खण्ड २, पृ. १८३ से १८६ तक
(ग) प्रकर्षेण संशयाऽऽद्यभावस्वभावेन मीयते
परिच्छिद्यते वस्तु येन तत्प्रमाणम् । - रत्नाकरावतारिका १ परि.
'स्व-पर-व्यवसायि ज्ञानं प्रमाणम् ।'
(घ) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २२२