SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 484
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचम शतक : उद्देशक-४] [४४३ [१९-२] तत्पश्चात् ध्यानान्तरिका में प्रवृत्त होते हुए (प्रचलित ध्यान की समाप्ति होने पर और दूसरा ध्यान प्रारम्भ करने से पूर्व) भगवान् गौतम के मन में इस प्रकार का इस रूप का अध्यवसाय (संकल्प) उत्पन्न हुआ—निश्चय ही महर्द्धिक यावत् महानुभाग (महाभाग्यशाली) दो देव, श्रमणे भगवान् महावीर स्वामी के निकट प्रकट हुए; किन्तु मैं तो उन देवों को नहीं जानता कि वे कौन-से कल्प (देवलोक) से या स्वर्ग से, कौन-से विमान से और किस प्रयोजन से शीघ्र यहाँ आए हैं ? अतः मैं भगवान् महावीर स्वामी के पास जाऊँ और वन्दन-नमस्कार करूँ; यावत् पर्युपासना करूं, और ऐसा करके मैं इन और इस प्रकार के उन (मेरे मन में पहले उत्पन्न) प्रश्नों को पूर्छ । यों श्री गौतमस्वामी ने विचार किया और अपने स्थान से उठे। फिर जहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विराजमान थे, वहाँ आए यावत उनकी पर्युपासना करने लगे। [३] 'गोयमा!' इ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वदासी से नूणं तव गोयमा! झाणंतरियाए वट्टमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव जेणेव मम अंतिए तेणेव हव्वमागए। से नूणं गोतमा! अढे समठे? हंता, अत्थि। तं गच्छाहि णं गोतमा! एते चेव देवा इमाइं एतारूवाई वागरणाई वागरेहिति। . [१९-३] इसके पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम आदि अनगारों को सम्बोधित करके भंगवान् गौतम से इस प्रकार कहा—गौतम! एक ध्यान को समाप्त करके दूसरा ध्यान प्रारम्भ करने से पूर्व (ध्यानान्तरिका में प्रवृत्त होते समय) तुम्हारे मन में इस प्रकार का अध्यवसाय (संकल्प) उत्पन्न हुआ कि मैं देवों सम्बन्धी तथ्य जानने के लिए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की सेवा में जा कर उन्हें वन्दन-नमस्कार करूं, यावत् उनकी पर्युपासना करूं, उसके पश्चात् पूर्वोक्त प्रश्न पूछू, यावत् इसी कारण से जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम मेरे पास शीघ्र आए हो। हे गौतम ! यही बात है न ? (क्या यह अर्थ समर्थ है ?)' (श्री गौतम स्वामी ने कहा-) 'हाँ, भगवन्! यह बात ऐसी ही है।' (इसके पश्चात् भगवान् महावीर स्वामी ने कहा-) 'गौतम! तुम (अपनी शंका के निवारणार्थ उन्हीं देवों के पास) जाओ। वे देव ही इस प्रकार की जो भी बातें हुई थीं, तुम्हें बतायेंगे।' [४] तए णं भगवं गोतमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसति, २ जेणेव ते देवा तेणेव पहारेत्थ गमणाए। [१९-४] तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर द्वारा इस प्रकार की आज्ञा मिलने पर भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार किया और फिर जिस तरफ वे देव थे, उसी ओर जाने का संकल्प किया। [५] तए णं ते देवा भगवं गोतम एज्जमाणं पासंति, २ हट्ठा जाव हयहिदया खिप्पामेव अब्भुटेति, २ खिप्पामेव पच्चुवगच्छंति, २ जेणेव भगवं गोतमे तेणेव उवागच्छंति, २त्ता जाव णमंसित्ता एवं वदासी एवं खलु भंते! अम्हे महासुक्कातो कप्पातो महासामाणातो' विमाणातो दो देवा महिड्डिया जाव पादुब्भूता, तए णं अम्हे समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो, २ पाठान्तर-'महासग्गातो महाविमाणातो'।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy