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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र आठवें उद्देशक में बाल, पण्डित और बालपण्डित मनुष्यों के आयुष्यबन्ध, कायिकादि क्रिया, जय-पराजय, हेतु, सवीर्यत्व-अवीर्यत्व की प्ररूपणा है। नौवें उद्देशक में विविध पहलुओं से जीवों के गुरुत्व-लघुत्व आदि का निरूपण किया गया है। दसवें उद्देशक में 'चलमान चलित' आदि सिद्धान्तों के विषय में अन्यतीर्थिक प्ररूपणा प्रस्तुत करके उसका निराकरण किया गया है। कुल मिलाकर समस्त जीवों की सब प्रकार की परिस्थिति के विषय में इस शतक में विचार किया गया है, इस दृष्टि से यह शतक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।