SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 441
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०० ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र द्वार— लेश्याओं के तीन परिणाम — जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट । इनके भी तीन-तीन भेद करने से नौ इत्यादि भेद होते हैं । प्रत्येक लेश्या अनन्त प्रदेशवाली है। प्रत्येक लेश्या की अवगाहना असंख्यात आकाश प्रदेशों में है। कृष्णादि छहों लेश्याओं के योग्य द्रव्यवर्गणाएं औदारिक आदि वर्गणाओं की तरह अनन्त हैं। तरतमता के कारण विचित्र अध्यवसायों के निमित्त रूप कृष्णादिद्रव्यों के समूह असंख्य हैं; क्योंकि अध्यवसायों के स्थान भी असंख्य हैं। अल्पबहुत्वद्वार —— लेश्याओं के स्थानों का अल्पबहुत्व इस प्रकार है— द्रव्यार्थरूप से कापोतलेश्या के जघन्य स्थान सबसे थोड़े हैं, द्रव्यार्थरूप से नीललेश्या के जघन्य स्थान उससे असंख्यगुणे हैं, द्रव्यार्थरूप से कृष्णलेश्या के जघन्य स्थान असंख्यगुणे हैं, द्रव्यार्थरूप से तेजोलेश्या के जघन्य स्थान उससे असंख्यगुणे हैं और द्रव्यार्थरूप से पद्मलेश्या के जघन्य स्थान उससे असंख्यगुणे हैं और द्रव्यार्थरूप से शुक्ललेश्या के जघन्य स्थान उससे भी असंख्यगुणे हैं। इत्यादिरूप से सभी द्वारों का वर्णन प्रज्ञापनासूत्रोक्त लेश्यापद के चतुर्थ उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए । ॥ चतुर्थ शतक : दशम उद्देशक समाप्त ॥ चतुर्थ शतक सम्पूर्ण १. (क) देखिये प्रज्ञापना० मलयगिरि टीका, पद १७, उ. ४ में परिणामादि द्वार की व्याख्या । (ख) भगवती सूत्र, अ. वृत्ति, पत्रांक २०५-२०६
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy