SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ६. सोहम्मीसाणेसुणं भंते! कप्पेसु कति देवा आहेवच्चं जाव विहरंति ? गोयमा! दस देवा जाव विहरंति, तं जहा—सक्के देविंदे देवराया, सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे। ईसाणे देविंदे देवराया, सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे। एसा वत्तव्वया सव्वेसु वि कप्पेसु, एते चेव भाणियव्वा। जे य इंदा ते य भाणियव्वा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति०।। ॥ तइयसते : अट्ठमो उद्देसओ समत्तो॥ [६ प्र.] भगवन् ! सौधर्म और ईशानकल्प में आधिपत्य करते हुए कितने देव विचरण करते हैं ? [६ उ.] गौतम! उन पर आधिपत्य करते हुए यावत् दस देव विचरण करते हैं, यथा—देवेन्द्र, देवराज शक्र, सोम, यम, वरुण और वैश्रमण, देवेन्द्र देवराज ईशान, सोम, यम, वरुण और वैश्रमण। ___ यह सारी वक्तव्यता सभी कल्पों (देवलोकों) के विषय में कहनी चाहिए और जिस देवलोक का जो इन्द्र है, वह कहना चाहिए। 'हे भगवन्! यह इसी प्रकार है, भगवन्! यह इसी प्रकार है'; यों कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरण करने लगे। विवेचन वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों पर आधिपत्य की प्ररूपणा' प्रस्तुत तीन सूत्रों के क्रमश: वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों पर आधिपत्य की प्ररूपणा की गई है। वाणव्यन्तर देव और उनके अधिपति दो-दो इन्द्र-चतुर्थ सूत्र में प्रश्न पूछा गया है पिशाचकुमारों के सम्बन्ध में, किन्तु उत्तर दिया गया है—वाणव्यन्तर देवों के सम्बन्ध में। इसलिए यहाँ पिशाचकुमार का अर्थ वाणव्यन्तर देव ही समझना चाहिए। वाणव्यन्तर देवों के ८ भेद हैं—किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच। इन प्रत्येक पर दो-दो अधिपति–इन्द्र इस प्रकार हैं-किन्नर देवों के दो इन्द्र–किन्नरेन्द्र, किम्पुरुषेन्द्र, किम्पुरुष देवों के दो इन्द्र-सत्पुरुषेन्द्र और महापुरुषेन्द्र, महोरग देवों के दो इन्द्र-अतिकायेन्द्र और महाकायेन्द्र, गन्धर्व देवों के दो इन्द्र-गीतरतीन्द्र और गीतयशेन्द्र, यक्षों के दो इन्द्र–पूर्णभद्रेन्द्र और मणिभद्रेन्द्र, राक्षसों के दो इन्द्र भीमेन्द्र और महाभीमेन्द्र, भूतों के दो इन्द्र-सुरूपेन्द्र (अतिरूपेन्द्र) और प्रतिरूपेन्द्र, पिशाचों के दो इन्द्र—कालेन्द्र महाकालेन्द्र। १. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ टिप्पणयुक्त) भा. १, पृ. १७७ (ख) 'व्यन्तराः किन्नर-किम्पुरुष-महोरग-गन्धर्व-यक्ष-राक्षस-भूत-पिशाचाः।-तत्त्वार्थसूत्र भाष्य अ. ४, सू.१२, पृ. ९७ से ९९ (ग) 'पूर्वयोर्दीन्द्राः '-तत्त्वर्थसूत्र-भाष्य, अ.४, सू. ६, पृ. ९२
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy