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तृतीय शतक : उद्देशक-७]
[३७३ [४-४] देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल—सोम महाराज की आज्ञा में, सेवा (उपपात-समीप) में,वचन-पालन में, और निर्देश में ये देव रहते हैं यथा-सोमकायिक अथवा सोमदेवकायिक, विद्युत्कुमारविद्युत्कुमारियाँ, अग्निकुमार-अग्निकुमारियाँ, वायुकुमार-वायुकुमारियाँ, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारारूप; ये तथा इसी प्रकार के दूसरे सब उसकी भक्ति वाले, उसके पक्ष वाले, उससे भरण-पोषण पाने वाले (भृत्य या उसकी अधीनता में रहने वाले) देव उसकी आज्ञा, सेवा, वचनपालन और निर्देश में रहते
[५]जंबुद्दीवे २ मंदरस्स पव्वयस्स दाहणेणंजाइंइमाइं समुप्पज्जंति, तंजहा -गहदंडा ति वा, गहमुसला ति वा, गहगज्जिया ति वा, एवं गहजुद्धा ति वा, गहसिंघाडगा ति वा, गहावसव्वा इवा.अब्भा तिवा,अब्भरुक्खा तिवा,संझाइवा,गंधव्वनगरा तिवा, उक्कापाया ति वा, दिसीदाहा ति वा, गज्जिया ति वा, विज्जुया ति वा, पंसुवुट्ठी ति वा, जूवेति वा, जक्खालित्ते त्ति वा, धूमिया इवा, महिया इवा, रयुग्घाया इवा, चंदोवरागा ति वा, सूरोवरागा तिवा, चंदपरिवेसा ति वा, सूरपरिवेसा ति वा, पडिचंदा इवा, पडिसूरा ति वा, इंदधणू ति वा, उदगमच्छ-कपिहसिय-अमोहपाईणवाया ति वा, पडीणवाता ति वा, जाव सवंट्टयवाता ति वा, गामदाहा इ वा, जाव सन्निवेसदाहा ति वा पाणक्खया जणक्खया धणक्खया कुलक्खया वसणब्भूया अणारिया जे यावन्ने तहप्पगारा णते सक्कस्स देविंदस्स देवरणो सोमस्स महारण्णो अण्णाया अदिट्ठा असुया अमुया अविण्णाया, तेसिं वा सोमकाइयाणं देवाणं।
[४-५] इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में जो कार्य होते हैं यथा ग्रहदण्ड, ग्रहमूसल, ग्रहगर्जित, ग्रहयुद्ध, गृह-शृंगाटक, ग्रहापसव्य, अभ्र, अभ्रवृक्ष, सन्ध्या,गन्धर्वनगर, उल्कापात, दिग्दाह, गर्जित, विद्युत् (बिजली चमकाना), धूल की वृष्टि, यूप, यक्षादीप्त, धूमिका, महिका, रज, उद्घात, चन्द्रग्रहण (चन्द्रोपराग), सूर्योपराग (सूर्यग्रहण), चन्द्रपरिवेष, सूर्यपरिवेष, (सूर्य मण्डल), प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, अथवा उदकमत्स्य, कपिहसित, अमोघ, पूर्वदिशा का वात और पश्चिम दिशा का वात, यावत् संवर्तक वात, ग्रामदाह यावत् सन्निवेशदाह, प्राणक्षय, जनक्षय, धनक्षय, कुलक्षय यावत् व्यसनभूत अनार्य (पापरूप) तथा उस प्रकार के दूसरे सभी कार्य देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल सोम महाराज से (अनुमान की अपेक्षा) अज्ञात (न जानते हुए), अदृष्ट (न देखे हुए), अश्रुत (न सुने हुए), अस्मृत (स्मरण न किये हुए) तथा अविज्ञात (विशेष रूप से न जाने हुए) नहीं होते। अथवा ये सब कार्य सोमकायिक देवों से भी अज्ञात नहीं होते। अर्थात् उनकी जानकारी में ही होते
हैं।
[६] सक्कस्स णं देविंदस्स देवरणो सोमस्स महारण्णो इमे अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहा इंगालए वियालए लोहियक्खे सणिच्छरे चंदे सूरे सुक्के बुहे बहस्सती राहू।
[४-६] देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल सोम महाराज के ये देव अपत्यरूप से अभिज्ञात (जाने-माने) होते हैं, जैसे—अंगारक (मंगल), विकालिक, लोहिताक्ष, शनैश्चर, चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बुध, बृहस्पति और राहु।
[७] सक्कस्स णं देविंदस्स देवरणो सोमस्स महारणो सत्तिभागं पलिओवमं ठिती