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________________ तृतीय शतक : उद्देशक-२] [३०७ तथा यथोचित छोटे-मोटे रत्नों को ले (चुरा) कर स्वयं एकान्त भाग में चले जाते हैं। [२] अस्थि णं भंते! तेसिं देवाणं अहालहुस्सगाइं रयणाई ? हंता, अस्थि। [१३-२ प्र.] भगवन् ! क्या उन (वैमानिक) देवों के पास यथोचित छोटे-मोटे रत्न होते हैं ? [१३-२ उ.] हाँ गौतम! (उन वैमानिक देवों के पास यथोचित छोटे-मोटे रत्न) होते हैं। [३] से कहमिदाणिं पकरेंति ? तओ से पच्छा कायं पव्वहंति। [१३-३ प्र.] भगवन् ! (जब वे (असुरकुमार देव) वैमानिक देवों के यथोचित रत्न चुरा कर भाग जाते हैं, तब वैमानिक देव उनका क्या करते हैं ? [१३-३ उ.] (गौतम! वैमानिकों के रत्नों का अपहरण करने के) पश्चात् वैमानिक देव उनके शरीर को अत्यन्त व्यथा (पीड़ा) पहुँचाते हैं। [४] पभू णं भंते! ते असुरकुमारा देवा तत्थगया चेव समाणा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरित्तए ? णो इणढे समठे, ते णं तओ पडिनियत्तंति, तओ पडिनियत्तिता इहमागच्छंति, २ जति णं ताओ अच्छराओ आढायंति परियाणंति, पभू णं ते असुरकुमारा देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरित्तए, अह णं ताओ अच्छराओ नो आढायंति नो परियाणंति णो णं पभू ते असुरकुमारा देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणा विहरित्तए। _ [१३-४ प्र.] भगवन् ! क्या वहाँ (सौधर्मकल्प में) गए हुए वे असुरकुमार देव उन (देवलोक की) अप्सराओं के साथ दिव्य भोगने योग्य भोगों को भोगने में समर्थ हैं ? (अर्थात् वे वहाँ उनके साथ भोग भोगते हुए विहरण कर सकते हैं ?) [१३-४ उ.] (हे गौतम!) यह अर्थ (- ऐसा करने में वे) समर्थ नहीं। वे (असुरकुमार देव) वहाँ से वापस लौट जाते हैं । वहाँ से लौट कर वे यहाँ (अपने स्थान में) आते हैं। यदि वे (वैमानिक) अप्सराएँ उनका (असुरकुमार देवों का) आदर करें, उन्हें स्वामीरूप में स्वीकारें तो, वे असुरकुमार देव उन (ऊर्ध्वदेवलोकगत) अप्सराओं के साथ दिव्य भोग भोग सकते हैं, यदि वे (ऊपर की) अप्सराएँ उनका आदर न करें, उनको स्वामी-रूप में स्वीकार न करें तो, असुरकुमार देव उन अप्सराओं के साथ दिव्य एवं भोग्य भोगों को नहीं भोग सकते, भोगते हुए विचरण नहीं कर सकते। [५] एवं खलु गोयमा! असुरकुमारा देवा सोहम्मं कप्पं गया य, गमिस्संति य। _ [१३-५] हे गौतम! इस कारण से असुरकुमार देव सौधर्मकल्प तक गए हैं, (जाते हैं) और जायेंगे।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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