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________________ तृतीय शतक : उद्देशक-१] [२९७ से शक्रेन्द्र के विमानों को कुछ नीचा एवं निम्नतर प्रतिपादन किया गया है। उच्चता-नीचता या उन्नतता-निम्नता किस अपेक्षा से?-उच्चता और उन्नतता के यहाँ दो अर्थ किये गये हैं—(१) प्रमाण की अपेक्षा से, अथवा प्रासाद की अपेक्षा से विमानों की उच्चता तथा (२) शोभाधिक आदि गुणों की अपेक्षा से अथवा प्रासाद के पीठ की अपेक्षा से उन्नतता समझना चाहिए। तथा इन दोनों के विपरीत नीचत्व और निम्नत्व समझ लेना चाहिए। यों तो शास्त्रान्तर में दोनों इन्द्रों के विमानों की ऊंचाई ५०० योजन कही है, वह सामान्यापेक्षा से समझना चाहिए। दोनों इन्द्रों का शिष्टाचार तथा विवाद में सनत्कुमारेन्द्र की मध्यस्थता ५६.[१] पभू णं भंते! सक्के देविंदे देवराया ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतियं पाउब्भवित्तए? हंता, पभू। [५६-१ प्र.] भगवन्! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, देवेन्द्र देवराज ईशान के पास प्रकट होने (जाने) में समर्थ हैं ? [५६-१ उ.] हाँ गौतम! शक्रेन्द्र, ईशानेन्द्र के पास जाने में समर्थ है । [२] से णं भंते! किं आढायमाणे पभू, अणाढायमाणे पभू? गोयमा! आढायमाणे पभू, नो अणाढायमाणे पभू । [५६-२ प्र.] भगवन् ! (जब शक्रेन्द्र, ईशानेन्द्र के पास जाता है तो) क्या वह आदर करता हुआ जाता है, या अनादर करता हुआ जाता है ? [५६-२ उ.] हे गौतम! वह उसका (ईशानेन्द्र का) आदर करता हुआ जाता है, किन्तु अनादर करता हुआ नहीं। ५७.[१] पभू णं भंते! ईसाणे देविंदे देवराया सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतियं पाउब्भवित्तए? हंता, पभू। [५७-१ प्र.] भगवन्! देवेन्द्र देवराज ईशान, क्या देवेन्द्र देवराज शक्र के पास प्रकट होने (जाने) में समर्थ है? [५७-१ उ.] हाँ गौतम! ईशानेन्द्र, शक्रेन्द्र के पास जाने में समर्थ है। [२] से भंते! किं आढायमाणे पभू, अणाढायमाणे पभू? गोयमा! आढायमाणे वि पभू, अणाढायमाणे वि पभू। [५७-२ प्र.] भगवन् ! (जब ईशानेन्द्र, शक्रेन्द्र के पास जाता है तो), क्या वह आदर करता हुआ (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १६७ (ख) भगवतीसूत्र, प्रमेयचन्द्रिका टीका (हिन्दीगुर्जर भाषानुवादसहित) भा. ३, पृ. २८३-२८४ २. (क) जीवाभिगमसूत्र वृत्ति (स. पृ. ३९७) (ख) भगवती (टीकानुवाद) प्रथम खण्ड, पृ. २९६; भगवती. अ. वृत्ति, पृ. १६९
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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