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________________ २८४] तीन सूत्रों में तीन तथ्यात्मक वृत्तान्त प्रस्तुत किए गये हैं १ – ईशानेन्द्र के पूर्वभव के विषय में गौतमस्वामी का प्रश्न । २ तामली गृहपति और उसका प्राणामा प्रव्रज्याग्रहण का संकल्प । ३ संकल्पानुसार विधिपूर्वक प्राणामा प्रव्रज्याग्रहण और पालन । तामलित्ती ताम्रलिप्ती— भगवान् महावीर से पूर्व भी यह नगरी बंगदेश की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध थी । तामली गृहपति के प्रकरण से भी यह बात सिद्ध होती है कि बंगदेश ताम्रलिप्ती के कारण गौरवपूर्ण अवस्था में पहुँचा हुआ था । अनेक नदियाँ होने के कारण जलमार्ग और स्थलमार्ग दोनों से माल का आयात-निर्यात होने के कारण व्यापार की दृष्टि से तथा सरसब्ज होने से उत्पादन की दृष्टि से भी यह समृद्ध था । वर्तमान 'ताम्रलिप्ती' का नाम अपभ्रष्ट होकर 'तामलूक' हो गया है, यह कलकत्ता के पास मिदनापुर जिले में है । । मौर्यपुत्र - तामली तामली गृहपति का नाम ताम्रलिप्ती नगरी के आधार पर तामली (ताम्रलिप्त) रखा गया मालूम होता है। मौर्यपुत्र उसका विशेषण है। 'मुर' नाम की कोई प्रसिद्ध जाति थी, जिसके कारण यह वंश 'मौर्य' नाम से प्रसिद्ध हुआ। जो भी हो, ताम्रलिप्ती के गृहपतियों में मौर्यवंश ख्यातिप्राप्त था । १. कठिन शब्दों के विशेष अर्थ - पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि = पूर्वरात्र ( रात्रि का पहला भाग) और अपररात्र ( रात्रि के पिछले भाग के बीच में मध्यरात्रिकाल के समय (शब्दश: अर्थ ) ; अथवा पूर्वरात्रि व्यतीत होने के बाद अपररात्रि (रात्रि के पश्चिम भाग) काल के समय (परम्परागत अर्थ)। अज्झत्थिए= आध्यात्मिक ( आत्मगत अध्यवसाय ) — संकल्प | कल्लाणफलवित्तिविसेसो कल्याणकारी फलविशेष । वड्ढामि = (शब्दशः) बढ़ रहा हूँ, (भावार्थ) घर में बढ़ रहा है । किण्णा- किस हेतु (कारण) से । जिमियभुत्तुत्तरागए = जीम (भोजन) करके, भोजनोत्तरकाल में अपने उपवेशन ——बैठने = स्थान में आ गया। आयंते-शुद्ध जल से आचमन करके, तथा चोक्खे- - भोजन के कण, लेप छींटे आदि दूर करके मुँह साफ किया, और परमसूइब्भूए अत्यन्त ( बिल्कुल) शुचिभूत (साफसुथरा हुआ। २ प्रव्रज्या का नाम 'प्राणामा' रखने का कारण ३८. से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्च पाणामा पव्वज्जा ? गोयमा! पाणामाए णं पव्वज्जाए पव्वइए समाणे जं जत्थ पासइ इंदं वा खंदं वा रुद्दं वा सिवं वा वेसमणं वा अज्जं वा कोट्टकिरियं वा राजं वा जाव सत्थवाहं वा कागं वा साणं वा पाणं वा उच्चं पासइ उच्चं पणामं करेति, नीयं पासइ नीयं पणामं करेइ, जं जहा पासति तस्स २. [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (क) व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) (टीकानुवाद टिप्पण सहित) (पं. बेचरदासजी) खण्ड २, पृ. २४ (ख) इससे लगता है चन्द्रगुप्त मौर्य से पूर्व भी मौर्यवंश विद्यमान था । - सम्पादक (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति. पत्रांक १६३ (ख) भगवती सूत्र विवेचन युक्त (पं. घेवरचन्दजी) भा. २, पृ. ५७६ (ग) व्याख्याप्रज्ञप्ति टीकानुवाद (पं. बेचरदासजी) खण्ड २, पृ. ४१
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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