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________________ तृतीय शतक : उद्देशक-१] [२६९ ज्योतिष्केन्द्र परिवार—ज्योतिष्क निकाय के ५ प्रकार के देव हैं—सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारा। इनमें सूर्य और चन्द्र दो मुख्य एवं अनेक इन्द्र हैं। इनके भी प्रत्येक इन्द्र के चार-चार हजार सामानिक देव, १६-१६ हजार आत्मरक्षक और चार-चार अग्रमहिषियाँ होती हैं। ज्योतिष्क देवेन्द्रों के त्रायस्त्रिंश और लोकपाल नहीं होते। ___ वैक्रियशक्ति—इनमें से दक्षिण के देव और सूर्यदेव अपने वैक्रियकृत रूपों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को ठसाठस भरने में समर्थ हैं, और उत्तरदिशा के देव और चन्द्रदेव अपने वैक्रियकृत रूपों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप से कुछ अधिक स्थल को भरने में समर्थ हैं। दो गणधरों की पृच्छा—इन सब में दक्षिण के इन्द्रों और सूर्य के विषय में तृतीय गणधर श्री अग्निभूति द्वारा पृच्छा की गई है, जबकि उत्तर के इन्द्रों और चन्द्र के विषय में तृतीय गणधर श्री वायुभूति द्वारा पृच्छा की गई है। शक्रेन्द्र, तिष्यक देव तथा शक्र के सामानिक देवों की ऋद्धि, विकुर्वणाशक्ति आदि का निरूपण १५. "भंते!" त्ति भगवं दोच्चे गोयमे अग्गिभूति अणगारे समणं भगवं म० वंदति नमंसति, २ एवं वयासी–जति णं भंते! जोतिसिंदे जोतिसराया एमहिड्ढीए जाव एवतियं च गं पभू विकुवित्तए सक्के णं भंते! देविंदे देवराया केमहिड्ढीए जाव केवतियं च णं पभू विउव्वित्तए ? ... गोयमा! सक्के णं देविंदे देवराया महिड्ढीए जाव महाणुभागे। से णं तत्थ बत्तीसाए विमाणावाससयसहस्साणं चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं जाव चउण्हं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अन्नेसिं च जाव विहरइ। एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए। एवं जहेव चमरस्स तहेव भाणियव्वं, नवरं दो केवलकप्पे जम्बुद्दीवे दीवे, अवसेसं तं चेव। एस णं गोयमा! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो इमेयारूवे विसए विसयमेत्ते णं वुइए, नो चेव णं संपत्तीए. १. (क) भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १५७-१५८ (ख) तत्त्वार्थसूत्र अ.४, सू.६ व ११ का भाष्य, पृ.९२ (ग) प्रज्ञापमासूत्र में अंकित गाथाएँचमरे धरणे तह वेणुदेव-हरिकंत-अग्गिसीहे य । पुण्णे जलकंते वि य अमिय-विलंबे य घोसे य ॥६॥ बलि-भूयायंदे वेणुदालि-हरिस्सहे अग्गिमाणव-वसिटठे । जलप्पभे अमियवाहणे पहंजणे महाघोसे ॥७॥ चउसट्ठी सट्ठी खलु छच्च सहस्साओ असुरवज्जाणं । सामाणियाओ एए चउगुणा आयरक्खा उ ॥५॥ काले य महाकाले, सुरुव-पडिरूवं-पुण्णभद्दे य ।। अमरवइमाणिभद्दे भीमे य तहा महाभीमे ॥१॥ किण्णर-किंपुरिसे खलु सप्पुरिसे चेव तह महापुरिसे । अइकाय-महाकाय, गीयरई चेव गीयजसे ॥२॥ -प्रज्ञापना, क. आ. पृ.१०८,९१ तथा ११२ २ यहाँ जाव शब्द से "तायतीसाए से अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं चउण्हं लोकपालाणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं" तक का पाठ जानना चाहिए।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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