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________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-१०] [२४३ लोयप्पमाणमेत्ते अणंते चेव जाव (सु. २) गुणओ अवगाहणागुणे। [४] आकाशस्तिकाय के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए, किन्तु इतना अन्तर है कि क्षेत्र की अपेक्षा आकाशास्तिकाय लोकालोक-प्रमाण (अनन्त) है और गुण की अपेक्षा अवगाहना गुण वाला ५. जीवत्थिकाए णं भंते! कतिवण्णे कतिगंधे कतिरसे कइफासे ? गोयमा! अवण्णे जाव (सु. २) अरूवी जीवे सासते अवट्ठिते लोगदव्वे। से समासओ पंचविहे पण्णत्ते;तं जहा दव्वतो जाव गुणतो।दव्वतो णं जीवत्थिकाए अणंताइंजीवदव्वाइं। खेत्तओ लोगप्पमाणमेत्ते। कालतो न कयाइ न आसि जाव (सु. २) निच्चे। भावतो पुण अवण्णे अगंधे अरसे अफासे। गुणतो उवयोगगुणे। [५ प्र.] भगवन् ! जीवास्तिकाय में कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श हैं ? [५ उ.] गौतम! जीवास्तिकाय वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्शरहित है वह अरूपी है, जीव (आत्म) है, शाश्वत है, अवस्थित (और प्रदेशों की अपेक्षा) लोकद्रव्य (-लोकाकाश के बराबर) है। संक्षेप में, जीवास्तिकाय के पांच प्रकार कहे गए हैं। वह इस प्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण की अपेक्षा जीवास्तिकाय। द्रव्य की अपेक्ष-जीवास्तिकाय अनन्त जीवद्रव्यरूप है। क्षेत्र की अपेक्षा-लोकप्रमाण है। काल की अपेक्षा-वह कभी नहीं था, ऐसा नहीं, यावत् वह नित्य है। भाव की अपेक्षा जीवास्तिकाय में वर्ण नहीं, गन्ध नहीं, रस नहीं और स्पर्श नहीं है।गुण की अपेक्षा जीवास्तिकाय उपयोगगुण वाला है। ६. पोग्गलत्थिकाए णं भंते! कतिवण्णे कतिगंधे० रसे० फासे? गोयमा! पंचवण्णे पंचरसे दुगंधे अट्ठफासे रूवी अजीवे सासते अवट्ठिते लोगदव्वे। से समासओ पंचविहे पण्णत्ते; तं - मासओ पंचविहे पण्णत्ते; तं जहा -दव्वतो खेत्तओ कालतो भावतो गणतो। दव्वतो णं पोग्गलस्थिकाए अणंताई दव्वाइं। खेत्ततो लोगप्पमाणमेत्ते। कालतो न कयाइ न आसि जाव (सु. २) निच्चे। भावतो वण्णमंते गंध० रस० फासमंते। गुणतो गहणगुणे। [६ प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय में कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श [६ उ.] गौतम! पुद्गलास्तिकाय में पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श हैं। वह रूपी है,अजीव है,शाश्वत और अवस्थित लोकद्रव्य है। संक्षेप में उसके पांच प्रकार कहे गए हैं, यथा-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से और गुण से। द्रव्य की अपेक्षा—पुद्गलास्तिकाय अनन्त-द्रव्यरूप है, क्षेत्र की अपेक्षा-पुद्गलास्तिकाय लोक-प्रमाण है, काल की अपेक्षा—वह कभी नहीं था ऐसा नहीं, यावत् नित्य है। भाव की अपेक्षा-वह वर्ण वाला, गन्ध वाला, रस वाला और स्पर्श वाला है। गुण की अपेक्षा—वह ग्रहण गुण वाला है। विवेचन अस्तिकाय : स्वरूप, प्रकार एवं विश्लेषण प्रस्तुत ६ सूत्रों में अस्तिकाय के पांच भेद एवं उनमें से धर्मास्तिकाय आदि प्रत्येक के स्वरूप एवं प्रकार का निरूपण किया गया है।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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