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द्वितीय शतक : उद्देशक-८]
[२३९ के५ भद्रासन सपरिवार हैं। दक्षिण-पूर्व में आभ्यन्तर परिषद् के २४ हजार देवों के २४ हजार, दक्षिण में मध्यमपरिषद् के २८ हजार देवों के २८ हजार और दक्षिण-पश्चिम में बाह्यपरिषद् के ३२ हजार देवों के ३२ हजार भद्रासन हैं। पश्चिम में ७ सेनाधिपतियों के सात और चारों दिशाओं में आत्मरक्षक देवों के ६४-६४ हजार भद्रासन हैं।
विजयदेवसभावत् चमरेन्द्रसभावर्णन (१) उपपात-सभा में तत्काल उत्पन्न हुए इन्द्र को यह संकल्प उत्पन्न होता है कि मुझे पहले क्या और पीछे क्या कार्य करना है? मेरा जीताचार क्या है ?,(२) अभिषेक-फिर सामानिक देवों द्वारा बड़ी ऋद्धि से अभिषेकसभा में अभिषेक होता है। (३) अलंकार-सभा में उसे वस्त्राभूषणों से अलंकृत किया जाता है। (४) व्यवसाय-सभा में पुस्तक का वाचन किया जाता है, (५) सिद्धायतन में सिद्ध भगवान् के गुणों का स्मरण तथा भाववन्दन-पूजन किया जाता है। फिर सामानिक देव आदि परिवार सहित सुधर्मासभा (चमरेन्द्र की) में आते हैं।
॥ द्वितीय शतक : अष्टम उद्देशक समाप्त॥
१. (क) भगवती अ. वृत्ति. पत्रांक १४५-१४६
(ख) जीवाभिगम ५२१-६३२ क. आ.