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________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-६] [२३३ भाषा-ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम से और मोहनीयकर्म के उदय से, वचनयोग से असत्या और सत्यामृषा-भाषा बोली जाती है, तथा ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणीय के क्षयापेशम से सत्य और असत्यामृषा-भाषा बोली जाती है, तथा ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणीय के क्षयोपशम से सत्या और असत्याऽऽमृषा (व्यवहार) भाषा वचनयोग से बोली जाती है । (१२) भाषकअभाषक–अपर्याप्त-जीव, एकेन्द्रिय, सिद्ध भगवान् और शैलेशीप्रतिपन्न जीव अभाषक होते हैं। शेष सब जीव भाषक होते हैं।(१३)अल्पबहुत्व-सबसे थोड़े सत्य भाषा बोलने वाले, उनसे असंख्यातगने मिश्र भाषा बोलने वाले, उनसे असंख्यातगुना असत्य भाषा बोलने वाले, उनसे असंख्यातगुने व्यवहार भाषा बोलने वाले हैं तथा उनसे अनन्त गुने अभाषक जीव हैं। ॥ द्वितीय शतक : छठा उद्देशक समाप्त॥ १.(क) भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १४२ (ख) पण्णवणासुत्तं मूलपाठ, पृष्ठ २१४-२१५
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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