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________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-२] [२०३ तक टिकता है और उतने समय में पूर्वबद्ध वैक्रियशरीर नामकर्म के स्थूल पुद्गलों को अपने पर से झाड़ देता है और अन्य नये तथा सूक्ष्म पुद्गलों को ग्रहण करता है। यही वैक्रिय-समुद्घात है। ५. तैजससमुद्घात–तपस्वियों को प्राप्त होने वाली तेजोलेश्या (नाम की विभूति) का जब विनिर्गम होता है, तब 'तैजस-समुद्घात' होता है, जिसके प्रभाव से. तैजस शरीर नामकर्म के पुद्गल आत्मा से अलग होकर बिखर जाते हैं। अर्थात्-तेजोलेश्या की लब्धि वाला जीव ७-८ कदम पीछे हटकर घेरे और मोटाई में शरीरपरिमित और लम्बाई में संख्येय योजन परिमित जीवप्रदेशों के दण्ड को शरीर से बाहर निकालकर क्रोध के वशीभूत होकर जीवादि को जलाता है और प्रभूत तैजस शरीर नामकर्म के पुद्गलों की निर्जरा करता है। ६.आहारक-समुद्घात–चतुर्दशपूर्वधर साधु को आहारक शरीर होता है। आहारक लब्धिधारी साधु आहारक शरीर की इच्छा करके विष्कम्भ और मोटाई में शरीरपरिमित और लम्बाई में संख्येय योजन परिमित अपने आत्मप्रदेशों के दण्ड को शरीर से बाहर निकाल कर पूर्वबद्ध एवं अपने पर रहे हुए आहारक-शरीर नामकर्म के पुद्गलों को झाड़ देता (निर्जरा कर लेता) है। ७. केवलि-समुदघात–अन्तर्मुहूर्त में मोक्ष प्राप्त करने वाले केवली भगवान् के समुद्घात को केवलि-समुद्घात कहते हैं। वह वेदनीय, नाम और गोत्र कर्म को विषय करता है। अन्तर्मुहूर्त में मोक्ष प्राप्त करने वाले केवलज्ञानी अपने अघाती कर्मों को सम करने के लिए, यानी वेदनीय, नाम, गोत्र, इन तीन कर्मों की स्थिति को आयुकर्म के बराबर करने के लिए यह समुद्घात करते हैं, जिसमें केवल ८ समय लगते हैं। स्पष्टता के लिए पृष्ठ २०४ की टिप्पणी देखिए (क) भगवतीसूत्र-टीकानुवाद (पं. बेचरदास) भा. १, पृ. २६२ से २६४ (ख)प्रज्ञापना, टीका मलयगिरि. पृ.७९३-९४
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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