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________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-१] [१७९ सावत्थीए नयरीए पिंगलएणं नियंठेणं वेसालियसावएणं इणमक्खेवं पुच्छिए 'मागहा! किं सअंते लोगे अणंते लोगे ? एवं तं चेव' जेणेव इहं तेणेव हव्वमागए। से नूणं खंदया! अत्थे समत्थे ? हंता अत्थि।' [२] तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी से केस णं गोयमा! तहारूवे नाणी वा तवस्सी वा जेणं तव एस अट्ठे मम ताव रहस्सकडे हव्वमक्खाए, जओ णं तुमं जाणसि? तए णं से भगवं गोयमे खंदयं कच्चायणसगोत्तं एवं वयासी-एवं खलु खंदया! मम धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे उत्पन्नणाण-दसणधरे अरहा जिणे केवली तीयपच्चुप्पन्नमणागयवियाणए सव्वण्णू सव्वदरिसी जेणं ममं एस अढे तव ताव रहस्सकडे हव्वमक्खाए, जओ णं अहं जाणामि खंदया ! [३] तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते भगवं गोयम एवं वयासी-गच्छामो णं गोयमा! तव धम्मायरियं धम्मोवदेसयं समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो जाव पज्जुवासामो। अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेह। · [४] तए णं से भगवं गोयमे खंदएणं कच्चायणसगोत्तेणं सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरे तणेव पहारेत्थ गमणयाए। । [२०-१] इसके पश्चात् भगवान् गौतम कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक परिव्रजाक को पास आया हुआ जानकर शीघ्र ही अपने आसन से उठे और शीघ्र ही उसके सामने गए; और जहाँ कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक परिव्राजक था, वहाँ आए। स्कन्दक के पास आकर उससे इस प्रकार कहा-हे स्कन्दक! स्वागत है तुम्हारा, स्कन्दक! तुम्हारा सुस्वागत है! स्कन्दक! तुम्हारा आगमन अनुरूप (ठीक समय पर—उचित-योग्य हुआ है। हे स्कन्दक! पधारो! आप भले पधारे! (इस प्रकार श्री गौतमस्वामी ने स्कन्दक का सम्मान किया) फिर श्री गौतम स्वामी ने स्कन्दक से कहा-"स्कन्दक! श्रावस्ती नगरी में वैशालिक श्रावक पिंगलक निर्ग्रन्थ ने तुम से इस प्रकार आक्षेपपूर्वक पूछा था कि हे मागध! लोक सान्त है या अनन्त ? इत्यादि (सब पहले की तरह कहना चाहिए)। (पांच प्रश्न पूछे थे, जिनका उत्तर तुम न दे सके। तुम्हारे मन में शंका, कांक्षा आदि उत्पन्न हुए। यावत्-) उनके प्रश्नों से निरुत्तर होकर उनके उत्तर पूछने के लिए यहाँ भगवान् के पास आए हो। हे स्कन्दक! कहो, यह बात सत्य है या नहीं ?" स्कन्दक ने कहा "हाँ.गौतम! यह बात सत्य है।' [२०-२ प्र.] फिर कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक परिव्राजक ने भगवान् गौतम से इस प्रकार पूछा-"गौतम! (मुझे यह बतलाओ कि) कौन ऐसा ज्ञानी और तपस्वी पुरुष है, जिसने मेरे मन की गुप्त बात तुमसे शीघ्र कह दी; जिससे तुम मेरे मन की गुप्त बात को जान गए ?" [उ.] तब भगवान् गौतम ने कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक परिव्राजक से इस प्रकार कहा-'हे स्कन्दक! मेरे धर्मगुरु, धर्मोपदेशक, श्रमण भगवान् महावीर, उत्पन्न ज्ञान-दर्शन के धारक हैं, अर्हन्त हैं, जिन हैं, केवली हैं, भूत, भविष्य और वर्तमान काल के ज्ञाता हैं, सर्वज्ञ सर्वदर्शी हैं; उन्होंने तुम्हारे मन
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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