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द्वितीय शतक : उद्देशक - १]
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आभ्यन्तर एवं बाह्य निःश्वास को हम न जानते हैं, और न देखते हैं । तो हे भगवन् ! क्या ये पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव आभ्यन्तर और बाह्य उच्छ्वास लेते हैं तथा आभ्यन्तर और बाह्य निःश्वास छोड़ते हैं ? [३ उ.] हाँ, गौतम ! ये पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव भी आभ्यन्तर और बाह्य उच्छ्वास लेते हैं और आभ्यन्तर एवं बाह्य निःश्वास छोड़ते हैं ।
४. [ १ ] किं णं भंते! एते जीवा आणमंति वा पाणमंति वा उस्ससंति वा नीससंति वा ?
गोयमा! दव्वतो णं अणंतपएसियाइं दव्वाइं, खेत्तओ णं असंखेज्जपएसोगाढाई, कालओ अन्नयरद्वितीयाई, भावओ वण्णमंताई गंधमंताई रसमंताई फासमंताई आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ।
[४-१ प्र.] भगवन्! ये पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव, किस प्रकार के द्रव्यों को बाह्य और आभ्यन्तर उच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते हैं, तथा निःश्वास के रूप में छोड़ते हैं ?
[४-१ उ.] गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा अनन्तप्रदेश वाले द्रव्यों को, क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यप्रदेशों में रहे हुए द्रव्यों को, काल की अपेक्षा किसी भी प्रकार की स्थिति वाले (एक समय की, दो समय की स्थिति वाले इत्यादि) द्रव्यों को, तथा भाव की अपेक्षा वर्ण वाले, गन्ध वाले, रस वाले और स्पर्श वाले द्रव्यों को बाह्य और आभ्यन्तर उच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते हैं, तथा निःश्वास के रूप में छोड़ते हैं । [ २ ] जाई भावओ वण्णमंताई आण० पाण० ऊस० नीस० ताइं किं एगवण्णाई आणमंति वा पाणमंति ऊस० नीस० ?
आहारगमो नेयव्वो जाव ति चउ-पंचदिसिं ।
[४-२ प्र.] भगवन्! वे पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव भाव की अपेक्षा वर्ण वाले जिन द्रव्यों को बाह्य और आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हैं, क्या वे द्रव्य एक वर्ण वाले हैं ?
[४-२ उ.] हे गौतम! जैसा कि प्रज्ञापनासूत्र के अट्ठाईसवें आहारपद में कथन किया है, वैसा ही यहाँ समझना चाहिए। यावत् वे तीन, चार, पांच दिशाओं की ओर से श्वासोच्छ्वास के पुद्गलों को ग्रहण करते हैं।
५. किं णं भंते! नेरइया आ० पा० उ० नी० ?
तं चेव जाव नियमा आ० पा० उ० नी० । जीवा एगिंदिया वाघाय- निव्वाघाय भाणियव्वा । सेसा नियमा छद्दिसिं ।
[५ प्र.] भगवन्! नैरयिक किस प्रकार के पुद्गलों को बाह्य और आभ्यन्तर श्वासोच्द्वास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हैं ?
[५ उ.] गौतम! इस विषय में पूर्वकथनानुसार ही जानना चाहिए और यावत् —ये नियम से (निश्चितरूप से) छहों दिशा से पुद्गलों को बाह्य एवं आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हैं।